शनिवार, 19 सितंबर 2009

बुरे वक्त में

बुरे वक्त में
परमात्मा को कोसा जा सकता है
बेधड़क शिकायतें की जा सकती हैं
तोड़ी जा सकती हैं सारी औपचारिकताएँ

बुरे वक्त में
बरसों तक, बस सुबह या शाम
अगरबत्ती और दिया जलाने से ज्यादा
रिश्ते बढ़ाये जा सकते हैं परमात्मा से

बुरे वक्त में
जब किसी को कुछ भी नहीं सूझता
कि क्या करे? कहाँ जाए?
ईश्वर को एक मौका मिलता है,
जो उचित है वही करने का।


बुरे वक्त में,
जब साया भी साथ छोड़ जाता है।
तब आप पहली बार हम जानते हैं-
काली परछाईयों से आजाद रहकर,
जीने का स्वाद क्या होता है।

बुरे वक्त में
धुलता है मन का दर्पण
जब आपको रह-रह कर याद आते हैं
चाहे-अनचाहे, जाने-अनजाने
लापरवाह हो, जो पाप किये।

बुरे वक्त में
उठते हुए क्रोध के बवंडर
आंसुओं की बारिश में बदल जाते हैं।
खिजां के मौसम, बहार में ढल जाते हैं।

बुरा वक्त, हमेशा नहीं रहता।
बुरा वक्त, आदमी की अकड़ कम करता है।
बुरा वक्त इंसान को, खुदा के करीब ले जाता है।

बुरा कहा जाने वाला वक्त,
शायद उतना बुरा नहीं होता।

बुरे वक्त में इतना कुछ अच्छा होता है,
तो क्या ऐसे वक्त को बुरा कहा जाना चाहिए?

5 टिप्‍पणियां:

Kajal Kumar ने कहा…

यही तो मज़ा है
ईश्वर को जब चाहे जैसे यूज़ करो

संगीता पुरी ने कहा…

बिल्‍कुल सही लिखा आपने .. सिर्फ बुरा महसूस होता है .. पर बुरा वक्‍त बुरा नहीं होता .. बहुत कुछ सीखाता है लोगों को !!

निर्मला कपिला ने कहा…

बिलकुल सही कहा असल मे बुरा वक्त ही आदमी को जीना सिखाता है शुभकामनायें

अर्कजेश Arkjesh ने कहा…

बुरे वक्त मेँ कुछ ऐसा भी दिखाई पडता है जो अच्छे वक्त मेँ नहीँ दिखता ।

Udan Tashtari ने कहा…

ऐसा भी बुरा वक्त!! बहुत सही!

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