सोमवार, 21 सितंबर 2009

खुशी का आंसू, गम का आंसू

खुशी का आंसू, गम का आंसू, कैसे मैं पहचान करूं?
दोनों ही बहुत चमकते हैं, दोनों ही तो खारे हैं

बेबस मैं उम्रों-उम्रों तक, उस दिलबर का अरमान करूं
ख्वाबों में रहें या हकीकत में, मेरे जीने के सहारे हैं

मिले इक बार ही जीवन में, है उनका बहुत अहसान यही
उनकी यादों के भंवर में डूबे, हम तो लगे किनारे हैं

हमने था जिसे खुदा जाना, उसने ही समझा बेगाना
हैरान थे अपनी किस्मत से, कि हम कितने बेचारे हैं

नफरत करें या करें उल्फत, दोनों का अंजाम यही
उनके लिए हम ‘अजनबी’ हैं, वो सदा ही हमको प्यारे हैं

( पुर्नप्रेषि‍त)

1 टिप्पणी:

निर्मला कपिला ने कहा…

वाह जी बहुत सुन्दर् कविता है शुभकामनायें
सच मे ये आँ सू खुशी हो या गम साथ नहीं छोडते

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