सोमवार, 14 सितंबर 2009

तेरा जादू

तुमसे जब नजरें मिलती हैं
दिल धक से रह जाता है
कुछ कैसे कहूँ, चुप कैसे रहूँ
कुछ भी समझ नहीं आता है

तेरी काली-काली आंखों में
दो सागर से लहराते हैं
मेरे सब्र के बेड़े बह जाते
मेरा कारवां ही डुब जाता है

तेरी जुल्‍फें गहरी काली घटा
तेरा माथा चांद है पूनम का
गालों पे दमकती बिजलियों से
मेरा मन जग जग सा जाता है

अमृत के छलकते पैमाने
तेरे होंठों पे मेरी सांसें चलें
वक्त भी थम सा जाता है
तेरा जादू सिर चढ़ जाता है

जुल्फों में बसी काली रातें
भीनी भीनी सी महकती हैं
रगों में बहती तड़पन में
कुछ है जो चुप हो जाता है

बेरूखी की राहें न चलना
छलना न दिल का आईना
कभी झूठ मूठ होना न खफा
मेरा होश ही गुम हो जाता है

4 टिप्‍पणियां:

ओम आर्य ने कहा…

bahut hi sundar abhiwyakti ......badhayi

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा है आपने ..अच्छा लगा पढ़ना

अनिल कान्त ने कहा…

बहुत अच्छी लगी पढ़कर

Arshia Ali ने कहा…

सुंदर भाव।
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