सोमवार, 7 सितंबर 2009

या दिल की रहेगी बस दिल में




दिन जब अपने घर जाता है
जब रात उतरती है दिल में
तेरा गम मुझे फिर फिर लाता है
यादों की सुलगती महफिल में

इक राह मिले और ठहर गये
पर बात हुई बेगानों सी
हर कदम है देखा मुड़के तुझे
फिर पहुंचे नहीं किसी मंजिल पे

कोई पूछे नहीं क्या हुआ हमें
ये काम हैं आम दीवानों के
न नाम पता, न गाम पता
हम मर बैठे उस संगदिल पे

उम्मीद नहीं थी तुमसे कोई
दीदार भी देना छोड़ दिया
किस शहर गये तुम छोड़ हमें
क्या करम किया है बिस्मिल पे

अब क्या है इरादा तेरा बता
खफा हमसे हुई तुझे कहा खुदा
कभी मिलेगा फिर हो जलवानशीं
या दिल की रहेगी बस दिल में

2 टिप्‍पणियां:

ओम आर्य ने कहा…

dil se nikali bhaaw .....atisundar

अपूर्व ने कहा…

क्या खूब लिखा है..और गेयता अद्भुत है..बधाई

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