शनिवार, 26 सितंबर 2009

तेरी चाह में ना कोई राह मिली








तेरी चाह में ना कोई राह मिली
बस कदम कदम पर आह मिली

किसके आगे हम दम भरते
तेरी उल्फत का, तेरी चाहत का
न तेरा इशारा कोई मिला
न ऐसी कोई निगाह मिली

तूने चाहे दुनिया के सुख
दिल के रुख की सुनी नहीं
तूने देखी मेरी तंगहाली
न तुझे रूह की थाह मिली

जो दिल दे उसको दुख देना
जो आस करे, बेरुख रहना
तुझे किस रकीब1 का पास2 मिला,
तुझे किस अजीज3 की पनाह मिली

जिक्र तेरा आता है जहाँ
हम तुझको दुआ ही देते हैं
हम अजनबी चटखे शीशों में
हर सूरत को ही कराह मिली





1 पास - निकटता, सलाह, सम्मान, पर्यवेक्षण    2 अजीज - प्यारा अपना    3 रकी - दुश्मन


इस ब्‍लॉग पर रचनाएं मौलिक एवं अन्‍यत्र राजेशा द्वारा ही प्रकाशनीय हैं। प्रेरित होने हेतु स्‍वागत है।
नकल, तोड़ मरोड़ कर प्रस्‍तुत करने की इच्‍छा होने पर आत्‍मा की आवाज सुनें।

1 टिप्पणी:

अनिल कान्त ने कहा…

भाई वाह, मज़ा आ गया

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