शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

हमारा हदय उपवन

हमारा मन
परमात्मा रूपी परमरमणीय
आनन्द स्थली तक
पहुंचने वाला पथ है

हमारा मन, सावन की वह फुहार है
जो अपने भाव-अश्रुओं से
परमात्मा को अंकुरित करती है

परमात्मा के मधुमय अहसास से भरा हमारा मन
वह सुरभित पुष्प है
जिससे सारा उपवन महकता है

अपने मन से शोक का संहार करो
अपने मन को शुद्ध और दृढ़ बनाओ
जहाँ केवल परमात्मा फल फूल सके

अपने ह्रदय उपवन के चहुं ओर
दीवारें मत उठाओ
क्योंकि परमात्मा संकुचितता में
कुम्हला जाता है, मर जाता है

अपने ह्रदय के उपवन के द्वार खोलो
आने दो परमात्मा को भीतर
क्योंकि -
वही परम स्निग्ध छाया है
जिस तले जीवन के अंकुर फूटते हैं
वही हिमालयों से आई वह शीतल उर्वर पवन है
जिसमें उल्लासों की फुन्गियां लहलहाती हैं

अपने ह्रदय उपवन को
परमात्मा ही हो जाने दो
जिसका आदि ओर अंत न मिले

2 टिप्‍पणियां:

समय चक्र ने कहा…

बहुत सुन्दर पोस्ट .......सटीक विश्लेषण

Udan Tashtari ने कहा…

सुन्दर सार है इस रचना का.

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