शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

शुरूआत तो हो

किसी से उम्मीद रहे
किसी का इंतजार रहे
जीने में मज़ा आता है
जो जिन्दगी में प्यार रहे

दो बोल अपने कहो
दो बोल मेरे सुनो
तुम भी मायूस न हो
मुझे भी करार रहे

एक अफसाना तो हो
जो सबसे कहतें फिरें
ऐसा मौसम गुजरे
कि यादों में बहार रहे

कुछ लम्हें ऐसे हों
न ताउम्र वैसे हों
जो मुड़ कभी देखें
जिन्दगी में सार रहे

4 टिप्‍पणियां:

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत खुब लाजवाब रचना। बधाई

Himanshu Pandey ने कहा…

खूबसूरत रचना । धन्यवाद ।

बेनामी ने कहा…

मन के भावों को बहुत सुंदरता के साथ प्रकट किया है आपने।
वैज्ञानिक दृ‍ष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।

बेनामी ने कहा…

मन के भावों को बहुत सुंदरता के साथ प्रकट किया है आपने।
वैज्ञानिक दृ‍ष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।

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