Tuesday 30 November 2010
Thursday 4 November 2010
Monday 1 November 2010
ऐ मेरे मन राम संभल
इस जीवन का क्या है हल
जीना मुश्किल, मौत सरल
रोटी, कपड़ा और मकान में
दुनियां, चिंता की दुकान में
चिता के तयशुदा विधान में
सुकून की हर आशा निष्फल
हर जन माया गैल बढ़ा है
मन में सबके मैल बड़ा है
हवस का इत्र फुलेल चढ़ा है
कम पड़ता हर गंगाजल
निन्यान्वे के फेर में ओटा
बहुत हो फिर भी, लगता टोटा
उम्र का सच है, बहुत ही छोटा
बड़ा है इच्छाओं का छल
कर्म की बातें झूठी दिखतीं
सारी लकीरे झूठी दिखतीं
सारी तद्बीरें रूठी दिखती
सच लगता, बस भाग्य प्रबल
जीना मुश्किल, मौत सरल
रोटी, कपड़ा और मकान में
दुनियां, चिंता की दुकान में
चिता के तयशुदा विधान में
सुकून की हर आशा निष्फल
हर जन माया गैल बढ़ा है
मन में सबके मैल बड़ा है
हवस का इत्र फुलेल चढ़ा है
कम पड़ता हर गंगाजल
निन्यान्वे के फेर में ओटा
बहुत हो फिर भी, लगता टोटा
उम्र का सच है, बहुत ही छोटा
बड़ा है इच्छाओं का छल
कर्म की बातें झूठी दिखतीं
सारी लकीरे झूठी दिखतीं
सारी तद्बीरें रूठी दिखती
सच लगता, बस भाग्य प्रबल
हर सीता माया-मृग पीछे
वनवासों के जंगल खींचें
सोने की लंका है पीछे
ऐ मेरे मन राम संभल
इस जीवन का क्या है हल
जीना मुश्किल, मौत सरल
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