Wednesday, 24 August 2022
मन Mind
जब कोई गुजर जाता है
मंडराता है आस-पास
जो हैं, उन यादों में रहता है
जो हैं, उन सपनों में आता है
अपना ना होना जताता है
कहता है - अब देह नहीं हैं।
जहाँ रहती यादें, वो शीश नहीं
वो गेह नहीं है।
जिन यादों से मन बनता है।
जिस मन से दुनियां बनती है।
जिस मन से जीवन चलता है।
जब कोई गुजर जाता है
जीवन मृत्यु की अनिश्चितता के परे
जीवन मृत्यु की अनिश्चितता से उपजे भय से परे
क्या वाकई वो शांति पाता है?
या यादें सब संग जाती हैं
या सारा मन संग जाता है
यादें फिर ढूंढती हैं कोई शीश-कोई देह, कोई गेह
फिर फैलता है व्यापार पसंद नापसंद नफरत नेह
लौट आता है
फिर
जीवन मृत्यु की अनिश्चितता में
जीवन मृत्यु की अनिश्चितता से उपजे भय में
क्या वाकई वो शांति पाता है?
Sunday, 24 July 2022
एक तड़फड़ाहट
हम अपने आज को ‘आज’ की तरह गिनते ही नहीं। हम उसे बीते कल,परसों, महीनों या सालों के रूप में जानते हैं। एक आम आदमी को तो वह दशकों के रूप में याद रहता है। कुछ लोग दस बरस पहले की कहानी को कहते हैं - ‘कल ही की तो बात है’। वर्तमान या आज को आदमी टालता है। सुविधाजनक जिंदगी के बहाने बहुत सारे हैं। अभी तो पढ़ाई खत्म हुई, नई नौकरी है, अभी-अभी तो शादी हुई है, पत्नी गर्भवती है, बच्चा बड़ा हो रहा है, बच्चा स्कूल जाने लगा है, वक्त खराब है, अब कौन ढूंढे दूसरा नौकरी धंधा, पिता जी की डेथ हो गई, मां की बीमारी, बहन का ब्याह। सुविधाजनक या खुशहाल जिंदगी, आदमी को आलसी-निकम्मा बनाती है। वह किताबों, अखबारों, टीवीसीरीज की चादर ओढ़ कर भौतिक जीवन, मौसमी धूपछांव-बारिश के मज़े लेता है, हर हाल में आज को कल में टालता है... कल ही बना देता है। फलस्वरूप उसकी जिंदगी के 6-7 दशक में से सभी के सभी निकल जाते हैं. और फिर किसी दिन किसी 'आज'... मौत सामने नहीं.... उसी सुविधाजनक या खुशहाल जिंदगी की चादर में उसके साथ दुबकी बैठी, लेटी होती है।
Wednesday, 8 December 2021
अभी यहीं...किसी बुद्ध की तलाश
किसी बुद्ध को ढूंढने चले हो तो, बस आपको ये करना है कि सुबह से शाम रात तक खुद पर नज़र रखें, अपनी मूल प्रकृति को देखें।
Wednesday, 13 October 2021
सन्यास यानि अमरत्व का स्वाद
इस मरने वाले शरीर के लिए संस्कृत में शब्द है 'देह'। इसे देह इसलिए कहा जाता है क्योंकि आखिरकार आखिरी सफर में इसे दाह संस्कार द्वारा अग्नि को सौंपा समर्पित किया जाता है.. दाह संस्कार किया जाता है। जिसे दहन किया जाता है वह देह ताकि इससे मुक्त आत्मा अब परमात्मा को प्राप्त हो।
कुछ हिन्दू, अपनी मर्जी
से जीवन जीने का एक तरीका चुनते हैं जिसे सन्यास कहा जाता है। इसके तहत भले—चंगे रहते, जीते जी वे
अपना दाह संस्कार स्वयं ही संपन्न कर लेते हैं. इस तरह वह अग्नि से अपना नाता तोड़ते
हैं।
एक सन्यासी का मतलब ही है, आग से नाता तोड़ चुका व्यक्ति। न तो भोजन के लिए आग का इस्तेमाल करेगा, जलायेगा न अपने देह में आग को पलने बढ़ने का मौका देगा न जीवन में भौतिकता की आग— भोग.ऐश्वर्य को हवा देगा। बल्कि बस खाक—राख हो रहेगा, धरती माता को समर्पित हो रहेगा, जमीन का आदमी हो रहेगा, जमीन ही हो रहेगा।
जागृत परमतत्व को पहुंची आत्माएं, जिन्होंने इस नश्वर देह के होते हुए ईश्वर का साक्षात्कार किया वो भी धरती को अर्पित की जाती हैं। जो समाधि को प्राप्त हुए, उनकी समाधि बनाई जाती है।
भगवान शिव आराधकों शैवों की समाधि पर शिवलिंग स्थापित किया जाता है इसे 'अधिष्ठानम' कहते हैं। विष्णु भक्त वैष्णवों की समाधि पर तुलसी का पौधा—बिरवा रोपा जाता है जिसे ''वृन्दावनम्'' कहते हैं। अधिष्ठानम और वृन्दावनम् दोनों को जीवित गुरू मानकर लोग उनकी पूजा—आराधना—प्रार्थना करते हैं। उनसे मार्गदर्शन, आशीष लेते हैं ताकि वो भी इस नश्वर मरणधर्मा शरीर के साथ ही न सम्पन्न हो जायें, वो भी अमरत्व का स्वाद चख सकें।
श्री रमण महर्षि की समाधि अधिष्ठानम है। वहीं श्री राघवेन्द्र स्वामी की समाधि बृन्दावनम है। अधिष्ठानम में आत्मा अपने सृजनकर्ता—सृजक के साथ एकाकार हो जाती है। जबकि बृन्दावनम में आत्मा सृष्टिकर्ता की सृष्टि से ही एकाकार हो जाती है। हालांकि सनातन धर्म में सृजक—सृष्टा और सृष्टि भिन्न नहीं विचारे जाते, अद्वैत कहे जाते हैं।
The Sanskrit word for this mortal body is “Deha” and it is called so because at the end of its journey, it is submitted to fire by a process/Sanskara called “Dahana” to enable attainment of ParamAtma for the departed soul.
Some Hindu, may have chosen for themselves a path of Sanyasa(monkhood) wherein they would have conducted their own funeral rites while alive, and hence broken their relationship with fire/agni.
A Sanyasa is by himself, forbidden to use fire to cook food (or) thrive (or) possess any wealth in a material form.
The Sanyasa are not submitted to Fire at the end of their mortal journey, but are surrendered to Earth.
Some enlightened souls, who have attained to God realisation in their mortal lifetime are also surrendered to Earth, and on their Samadhi(tomb) if installed a “Shiva Lingam” it is called as “ADHISTANAM” & if installed a Tulasi/Basil plant is to be called as “BRINDAVANAM”.
The ADHISTANAM is a Shaivite tradition while the BRINDAVANAM is more a VaiShnava tradition.
The beings of the ADHISTANAM & BRINDAVANAM are both considered as living masters and people offer prayers, seek guidance & blessings from these souls who have now transformed from being “Finite to Infinite”
Ex:ADHISTANAM> Sri Ramana Maharshi & BRINDAVANAM>Sri Raghavendra Swamy.
In an ADHISTANAM the soul is identified as being one with the CREATOR, while in the BRINDAVANAM the soul is identified as one with the CREATION.
In Sanatana Dharma, the Creator & Creation are considered not separate & aDwaita.
Saturday, 22 May 2021
Paulo Coelho के कोट्स हिन्दी में
“There is only one thing that makes a dream impossible to achieve: the fear of failure.”
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आपको जोखिम उठाना ही होता है। हम अपने जीवन में चमत्कारों को केवल तब ही पूरी तरह समझ सकते हैं जब हम अपने जीवन में अप्रत्याशित को घटने का मौका दें।
“You have to take risks. We will only understand the miracle of life fully when we allow the unexpected to happen.”
Sunday, 31 January 2021
गरीबी
Friday, 1 January 2021
Thursday, 19 November 2020
Dear friends ! #Need money. #Needs #JOB/ #Naukri.
Dear friends ! #Need money. #Needs #JOB/ #Naukri. . #MA #BEd | Knowledge/Execution on #Adobe Photoshop, #InDesign, #Illustrator, #CorelDraw, EMsOffice etc. #Print #Media #Graphics and Designing | Do #English/Hindi /Punjabi #Translation | Experience little xyz type #VideoEditing on #AdobePremier | #Want to #work with any #religious #spiritual organisation | #Anywhere in #India. . Please Tell/ Message, if you have any lead....
Thursday, 12 November 2020
रट्टू तोता
तकरीबन महीना भर पहले की बात है। ये तोता.. जिसकी तस्वीर यहां दी गई है, हमारे परिसर में आया। इसने दो चार गिनती के शब्द रटे हुए थे, यानि स्वाभाविक ही हम सब को महसूस हुआ कि शायद किसी के घर का पला—बढ़ा, मनुष्यों के बीच रहने वाला अभ्यस्त तोता है। जिस किसी की भी बालकनी में जाता वही, फल—फ्रूट—सब्जी, भोज्य इस तोते को प्यार से परोसता। किसी ने जबरिया पकड़ने और पिंजरे का इंतजाम कर अपने यहां ही रख लेने की कोशिश नहीं की।
दिन गुजरे और आज धनतेरस का दिन आ गया। दीपावली के अवसर पर बिल्डर के आदमियों ने परिसर के सभी ब्लॉक्स में कल ही बिजली के बल्बों की लड़ियां लटकाईं थीं। आज सुबह सभी को इस तोते की यह बात पता चली कि सभी बालकनियों में जहां भी यह तोता जा रहा है, बल्बों की लड़ियों की तारें कुतर रहा है। महीने भर, सबके मनोरंजन का केन्द्र रहा यह तोता.. आज सबके गुस्से और परेशानी का सबब बन गया है।मुझे जाने क्यों तोते से संबंधित एक कहानी याद आ गई।
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जब वो घर लौटा तो उसने सोचा कि हो सकता है यह तोता कभी इस पिंजरे से उड़ जाये। किसी जंगल चला जाये। पर फिर किसी शिकारी के हाथ गया तो? तो क्यों न तोते को मैं कोई/कुछ ऐसी बात सिखा दूं... रटा दूं कि इसे किसी जालिम शिकारी के पिंजरे में न कैद होना पड़े। यहां वहां न बिकना पड़े। इसे बचने का मौका मिल जाये, ये उड़ जाये, और लौट कर फिर कभी न आये... और सदा मुक्त रहे।
तो उसने तोते को सिखाया— रटाया:मिट्ठू... मिट्ठू से मिलने जायेगा
लौट को फिर यहीं आयेगा
भरोसा तो करो....
तोता बूढ़ा नहीं था, जल्द ही उसने यह तीन वाक्य भी रट लिये। जब यह तीन वाक्य, तोते ने भली भांति रट लिये तो व्यक्ति ने सोचा — कि मैंने जो इसे सिखाया है इसमें गलत क्या है... वैसे भी पंछी को तो मुक्त ही रहना चाहिए। यदि इसे पिंजरे में रहना होगा तो खुद ही आयेगा। उसने तोते को पिंजरे से बाहर निकाला, खुला छोड़ दिया.. मगर तोता वापिस पिंजरे में जा बैठता। तो आदमी ने कहा — चलो मुक्त रहो, और मेरे पास भी रहो। अब वह तोते से निश्चिंत था। तोता भोजन पानी के लिए नीचे आता और बाकी समय घर के सामने या अन्य पेड़ों पर उड़ान भरता, मनमौजी रटी बातें बोलता और मस्त रहता।
फिर एक बार यूं हुआ कि तोता उसके घर कई दिनों तक नहीं आया। उस व्यक्ति ने सोचा कि चलो, पंछी है, मौज में कहीं चला गया होगा। उसने इंतजार किया पर तोता गया तो लौटा ही नहीं।
कुछ महीने बाद व्यक्ति को, फिर किताबें खरीदने शहर जाना पड़ा। लौटते हुए उसे वही तोते पंछी आदि बेचने वाला मिला, बड़ी उम्मीद से वह उसके पास पहुंचा और बोला कि क्या किसी जंगल में राम राम, गायत्री मंत्र और मिट्ठू इत्यादि बोलने वाला तोता तो नहीं दिखा। पंछी बेचने वाला बोला — भाई साहब हम तो शहर में रहते हैं... जंगली शिकारियों से पंछी खरीदते हैं शहर में बेच देते हैंं। हम खुद थोड़े ही जंगल जाकर...वगैरह वगैरह।
कई महीने बीत गये और साल भी। उस व्यक्ति का घर पुराना हो गया। छत चूने लगी। उसने मजदूर बुलाये और उन्हें घर के रिनोवेशन के काम पर लगाया। इस काम धाम से अलग एक कमरे में वो शांत हो किताबों में मग्न था। एक दोपहर उस व्यक्ति का ध्यान... दो मजदूरों की बातों पर गया—
पहला मजदूर बोला — मैं कल ही शहर गया था, हमारा मिट्ठू तो बहुत महंगा बिका, एक शहरी व्यक्ति ने उसके दो हजार रूपये दिये।
दूजा बोला — चलो किसी काम तो आया, वरना गांव में तो उसने लोगों को परेशान कर रखा था। कहीं भी बैठ जाये मंत्र गाये, राम राम बोले और वो क्या बोलता था...
मिट्ठू... मिट्ठू से मिलने जायेगा
लौट को फिर यहीं आयेगा
भरोसा तो करो....
.... अरे मिट्ठू टें टें कर तोतों को बुलायेगा, फसलें सब्जियां खराब करेगा, यहां वहां चीजें कुतरेगा ये तो बोलता ही नहीं था।पहला मजदूर बोला — अरे शहरियों को क्या मतलब, उसकी आजादी से... वो तो पिंजरे में रखेंगे, उनके वास्तुदोष शांत हो जायेंगे और उनके बच्चों का मनोरंजन भी। वैसे भी, उसे तो पिंजरे में ही रहने की आदत है... पता नहीं किसने सिखा दिया था कि —
मिट्ठू... मिट्ठू से मिलने जायेगा
लौट को फिर यहीं आयेगा
भरोसा तो करो....
भरोसा क्या करना, वो तो पिंजरे में ही रहने का आदी हो गया था, समय पर खाना—पीना, बच्चों—औरतों के बीच , मनुष्यों घरों में ही रहना—बैठना, रटी रटाई बातें बोलना।
...
किताबों में मग्न व्यक्ति को अचानक जैसे ब्रह्मज्ञान हुआ। बरसों से वह भी किताबों में मग्न है। धर्मग्रन्थों का अध्ययन अध्यापन, दूजों को बताना कि क्या करना और कैसे करना है... लेकिन वो स्वयं तो उस तोते की तरह है, जिसने उसे स्वयं ही सिखाया था कि —
मिट्ठू... मिट्ठू से मिलने जायेगा
लौट को फिर यहीं आयेगा
भरोसा तो करो....
उसने स्वयं कभी किताबों, भाषणबाजी और रटी—रटाई बातों से इतर मुक्ति का स्वाद नहीं चखा। ना उन बातों का उसके जीवन में, जिसे वह जी रहा है... उससे कोई सरोकार रहा।