Wednesday, 24 August 2022

मन Mind


जब कोई गुजर जाता है
मंडराता है आस-पास
जो हैं, उन यादों में रहता है
जो हैं, उन सपनों में आता है
अपना ना होना जताता है

कहता है - अब देह नहीं हैं।
जहाँ रहती यादें, वो शीश नहीं
वो गेह नहीं है।
जिन यादों से मन बनता है।
जिस मन से दुनियां बनती है।
जिस मन से जीवन चलता है।

जब कोई गुजर जाता है
जीवन मृत्यु की अनिश्चितता के परे
जीवन मृत्यु की अनिश्चितता से उपजे भय से परे
क्या वाकई वो शांति पाता है?

या यादें सब संग जाती हैं
या सारा मन संग जाता है
यादें फिर ढूंढती हैं कोई शीश-कोई देह, कोई गेह
फिर फैलता है व्यापार पसंद नापसंद नफरत नेह
लौट आता है

फिर
जीवन मृत्यु की अनिश्चितता में
जीवन मृत्यु की अनिश्चितता से उपजे भय में
क्या वाकई वो शांति पाता है?


Sunday, 24 July 2022

एक तड़फड़ाहट


हम अपने आज को ‘आज’ की तरह गिनते ही नहीं। हम उसे बीते कल,परसों, महीनों या सालों के रूप में जानते हैं। एक आम आदमी को तो वह दशकों के रूप में याद रहता है। कुछ लोग दस बरस पहले की कहानी को कहते हैं - ‘कल ही की तो बात है’। वर्तमान या आज को आदमी टालता है। सुविधाजनक जिंदगी के बहाने बहुत सारे हैं। अभी तो पढ़ाई खत्म हुई, नई नौकरी है, अभी-अभी तो शादी हुई है, पत्नी गर्भवती है, बच्चा बड़ा हो रहा है, बच्चा स्कूल जाने लगा है, वक्त खराब है, अब कौन ढूंढे दूसरा नौकरी धंधा, पिता जी की डेथ हो गई, मां की बीमारी, बहन का ब्याह। सुविधाजनक या खुशहाल जिंदगी, आदमी को आलसी-निकम्मा बनाती है। वह किताबों, अखबारों, टीवीसीरीज की चादर ओढ़ कर भौतिक जीवन, मौसमी धूपछांव-बारिश के मज़े लेता है, हर हाल में आज को कल में टालता है... कल ही बना देता है। फलस्वरूप उसकी जिंदगी के 6-7 दशक में से सभी के सभी निकल जाते हैं. और फिर किसी दिन किसी 'आज'... मौत सामने नहीं.... उसी सुविधाजनक या खुशहाल जिंदगी की चादर में उसके साथ दुबकी बैठी, लेटी होती है।

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आज को हम कभी कभार, कभी कहीं ही जीते हैं। दफ्तर धंधे से ली गई आधी या पूरी छुट्टी में, किसी को रेलवेस्टेशन विदा करने जाना हो या अर्थी का कंधा देने। किसी के जन्मदिन—शादी पर जाने या उदास होकर किसी मंदिर जाने, देर रात सस्ते हाट में सब्जी लेने जाने, या अस्पताल में भर्ती किसी परिचित को देखने जाने के दौरान ही हम आज का कुछ अंश जीते हैं। हमारे अधिकतर 'आज' का हिस्सा स्मार्ट—फोन की रील में खोये हुए.. दुकान या स्कूल के स्टूल—बैंच की सीट तोड़ते या दफ्तर की बोरियत में उस वक्त काटते हुए बीतता है, जो वक्त हमें काट और बिता रहा है।
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हमारे साल के 365 नहीं, दशकों-दशक, स्कूटर मोटरसाईकिल की किश्तों, होम लोन ई.एम.आई, बच्चों की पढ़ाई- लिखाई के लिए नई नौकरी-धंधे आदि की जद्दोजहद जुगाड़ में ही निकल जाते हैं। जिनकी जिंदगी पर कोरोना का हंटर पड़ा वो जानते हैं कि किस मजाक में 2-3 साल निकल गये।
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तो क्या आलस और निकम्मेपन से ग्रस्त एक आम आदमी ही इसके लिए जिम्मेदार है या कुछ बहुत कम ऐसे लोग हैं जो बहुत सारे ऐसे लोगों को, उनके सिर पर आगे निकले डंडे में गाजर बांधकर कोल्हू में जोते हुए हैं। धन संपत्ति, सुनिश्चितता सुविधा की बागड़ ही जीवन के खेत को खाये जाती है।
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इस तरह खुल्लम-खुल्ला मद्धम आत्महत्या का क्या अर्थ है? हम जी नहीं रहे, संघर्ष-अनिश्चितता को सामना नहीं करते, सुनिश्चितता-सुविधा के चक्कर में दिनों-दिन, हम हर दिन... हर रोज... हर आज को मृतप्राय बिता रहे हैं। और हम में से कौन नहीं जानता कि आज और अभी का जीवन ही जीवन है। जो बीता वह कल बीत गया है जो आने वाला है उसकी भी चिंता व्यर्थ है... पर आज अभी जो सांसें ली जा रही हैं, उस अनुलोम विलोम पर नजर रखने... उस घबराहट का सामना करने में ही असली जीवन है।
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हकीकत क्या है? क्या समय—समय पर जांचते रहा जाये कि कौन सी ख्वाहिशें किस तरह कर्ज की किश्तों को बढ़ा रही हैं और जिंदगी के दशकों-दशक घटा रही हैं।। जब कर्ज मिलता है तो सुख—सुविधा की खरीद बड़ी आसान हो जाती है... पर इसके साथ मिलनी वाली गुलामी... किश्तें, ईएमआई'यां, इन्हें चुकाने में आपके बाल या तो सफेद हो जायेंगे या झड़ जायेंगे और बाल किसी तरह बच भी जायें बाकी छत्तीस बीमारियों का अंदेशा बढ़ जायेगा। आपकी तोंद निकल आयेगी, शरीर बेडौल हो जायेगा, नजर कमजोर हो जायेगी और... बाकी जो आपने महसूस किया।
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दूजा जरूरी है कि समय समय पर हम अपने जीवन की प्राथमिकताएं तय करें। लक्ष्य बनायें पर ये एक दिन या हफ्ते या ज्यादा से ज्यादा मासिक लक्ष्य हों। यानि इच्छाओं, सुख-सुविधाओं का उगना, उन्हें पाल पोस कर बढ़ा करना और फिर विदा करने का समय तय हो। याद रखिये मौत अचानक आनी है उसे आपके लक्ष्यों और उन्हें प्राप्त करने की योजनाओं से कोई सरोकार लेना देना नहीं है। मौत को याद रखा जाना, यही एकमात्र याद आपके हर काम में मददगार साबित होगी।

Wednesday, 8 December 2021

अभी यहीं...किसी बुद्ध की तलाश

 किसी बुद्ध को ढूंढने चले हो तो, बस आपको ये करना है कि सुबह से शाम रात तक खुद पर नज़र रखें, अपनी मूल प्रकृति को देखें।

To find a Buddha all you have to do is see your nature.
~ Bodhidharma

Wednesday, 13 October 2021

सन्यास यानि​ अमरत्व का स्वाद

इस मरने वाले शरीर के लिए संस्कृत में शब्द है 'देह'। इसे देह इसलिए कहा जाता है क्योंकि आखिरकार आखिरी सफर में इसे दाह संस्कार द्वारा अग्नि को सौंपा समर्पित किया जाता है.. दाह संस्कार किया जाता है। जिसे दहन किया जाता है वह देह ताकि इससे मुक्त आत्मा अब परमात्मा को प्राप्त हो।

कुछ हिन्दू, अपनी मर्जी से जीवन जीने का एक तरीका चुनते हैं जिसे सन्यास कहा जाता है। इसके तहत भलेचंगे रहते, जीते जी वे अपना दाह संस्कार स्वयं ही संपन्न कर लेते हैं. इस तरह वह अग्नि से अपना नाता तोड़ते हैं।

एक सन्यासी का मतलब ही है, आग से नाता तोड़ चुका व्यक्ति। न तो भोजन के लिए आग का इस्तेमाल करेगा, जलायेगा न अपने देह में आग को पलने बढ़ने का मौका देगा न जीवन में भौतिकता की आग भोग.ऐश्वर्य को हवा देगा। बल्कि बस खाकराख हो रहेगा, धरती माता को समर्पित हो रहेगा, जमीन का आदमी हो रहेगा, जमीन ही हो रहेगा।

जागृत परमतत्व को पहुंची आत्माएं, जिन्होंने इस नश्वर देह के होते हुए ईश्वर का साक्षात्कार किया वो भी धरती को अर्पित की जाती हैं। जो समाधि को प्राप्त हुए, उनकी समाधि बनाई जाती है।

भगवान शिव आराधकों शैवों की समाधि पर शिवलिंग स्थापित किया जाता है इसे 'अधिष्ठानम' कहते हैं। विष्णु भक्त वैष्णवों की समाधि पर तुलसी का पौधाबिरवा रोपा जाता है जिसे ''वृन्दावनम्'' कहते हैं। अधिष्ठानम और वृन्दावनम् दोनों को जीवित गुरू मानकर लोग उनकी पूजाआराधनाप्रार्थना करते हैं। उनसे मार्गदर्शन, आशीष लेते हैं ताकि वो भी इस नश्वर मरणधर्मा शरीर के साथ ही सम्पन्न हो जायें, वो भी अमरत्व का स्वाद चख सकें।

श्री रमण महर्षि की समाधि अधिष्ठानम है। वहीं श्री राघवेन्द्र स्वामी की समाधि ​​बृन्दावनम है। अधिष्ठानम में आत्मा अपने सृजनकर्तासृजक के साथ एकाकार हो जाती है। जबकि बृन्दावनम में आत्मा सृष्टिकर्ता की सृष्टि से ही एकाकार हो जाती है। हालांकि सनातन धर्म में सृजकसृष्टा और सृष्टि भिन्न नहीं विचारे जाते, अद्वैत कहे जाते हैं।

The Sanskrit word for this mortal body is “Deha” and it is called so because at the end of its journey, it is submitted to fire by a process/Sanskara called “Dahana” to enable attainment of ParamAtma for the departed soul.

Some Hindu, may have chosen for themselves a path of Sanyasa(monkhood) wherein they would have conducted their own funeral rites while alive, and hence broken their relationship with fire/agni.

A Sanyasa is by himself, forbidden to use fire to cook food (or) thrive (or) possess any wealth in a material form.

The Sanyasa are not submitted to Fire at the end of their mortal journey, but are surrendered to Earth.

Some enlightened souls, who have attained to God realisation in their mortal lifetime are also surrendered to Earth, and on their Samadhi(tomb) if installed a “Shiva Lingam” it is called as “ADHISTANAM” & if installed a Tulasi/Basil plant is to be called as “BRINDAVANAM”.

The ADHISTANAM is a Shaivite tradition while the BRINDAVANAM is more a VaiShnava tradition.

The beings of the ADHISTANAM & BRINDAVANAM are both considered as living masters and people offer prayers, seek guidance & blessings from these souls who have now transformed from being “Finite to Infinite”

Ex:ADHISTANAM> Sri Ramana Maharshi & BRINDAVANAM>Sri Raghavendra Swamy.

In an ADHISTANAM the soul is identified as being one with the CREATOR, while in the BRINDAVANAM the soul is identified as one with the CREATION.

In Sanatana Dharma, the Creator & Creation are considered not separate & aDwaita.

Saturday, 22 May 2021

Paulo Coelho के कोट्स हिन्दी में

केवल एक ही चीज है जो किसी सपने को उपलब्ध होने में, असंभव बना देती है वह है — असफलता का भय।
“There is only one thing that makes a dream impossible to achieve: the fear of failure.”
..
आपको जोखिम उठाना ही होता है। हम अपने जीवन में चमत्कारों को केवल तब ही पूरी तरह समझ सकते हैं जब हम अपने जीवन में अप्रत्याशित को घटने का मौका दें।
“You have to take risks. We will only understand the miracle of life fully when we allow the unexpected to happen.”
..
हर वरदान जिसे नज़रअंदाज किया जाता है, अभिशाप बन जाता है। 
Every blessing ignored becomes a curse
..
साहसी बने. जोखिम उठायें. अनुभव तजु​र्बे का कोई तोड़ नहीं है, इसकी जगह कोई नहीं ले सकता।
“Be brave. Take risks. Nothing can substitute experience.”
..
अपने दिल से कहिये — दर्द.कुछ बुरेहोने.दुख.संताप. का भय किसी दु:ख से ज्यादा भयावह होता है। और कोई भी दिल कभी भी दु:खी नहीं होता जब वह अपने स्वप्न की खोज के उपक्रम में होता है।
“Tell your heart that the fear of suffering is worse than the suffering itself. And no heart has ever suffered when it goes in search of its dream.”
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एक दिन आप जागेंगे तो पायें कि आपके पास जरा भी समय शेष नहीं वो सब करने का, जो आप हमेशा करना चाहते थे. तो जो करना है आज अभी करें। ..
One day you will wake up and there won’t be any more time to do the things you’ve always wanted. Do it now.
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यदि आप सफल होना चाहते हैं तो एक ही नियम है— कभी भी खुद से झूठ न बोलें।
If you want to be successful, you must respect one rule – Never lie to yourself
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जब आप रास्ता पहचान गये हैं तो आपको डरना नहीं चाहिए। गलतियां करने का आपमें पर्याप्त साहस होना चाहिए। निराशा, हार, अवसाद, परेशानी झुंझलाहट ये ईश्वर के साधन हैं --- आपको रास्ता दिखाने के। 
When you find your path, you must not be afraid. You need to have sufficient courage to make mistakes. Disappointment, defeat, and despair are the tools God uses to show us the way.
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जब कोई छोड़ जाता है, ऐसा इसलिए क्योंकि कोई आने पहुंचने ही वाला है।
When someone leaves, it’s because someone else is about to arrive
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हमारे जीवन में परेशानियां आने के कारण होते हैं पर हम उनका सामना करने को तैयार नहीं होते। लेकिन इन परेशानियों से उबरने के बाद ही हमें पता चलता.समझ आता है कि किस चीज की क्या वजह थी।
There are moments when troubles enter our lives and we can do nothing to avoid them. But they are there for a reason. Only when we have overcome them will we understand why they were there.
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कोई किसी को नहीं खोता, क्योंकि कोई भी किसी को नहीं पाता। मुक्ति का यही सत्य है, बिना पाये ही समझने वाली यह महत्वपूर्ण चीज है।
No one loses anyone, because no one owns anyone. That is the true experience of freedom: having the most important thing in the world without owning it.
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अपने दिमाग को कभी भी इसकी इजाजत न दें... कि  वो आपके दिल को बताये कि क्या करना है। क्योंकि दिमाग बड़ी ही ​जल्दी घुटने टेक देता है।
Don’t allow your mind to tell your heart what to do. The mind gives up easily.
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चमत्कार तब ही घटते हैं जब आप इनमें यकीन करते हैं।
वह लोग सौभाग्यशाली हैं जो पहला कदम उठा सके।
टाईमपास करने की जगह कुछ करें। क्योंकि टाईम आपको पास कर रहा है। आप बीत रहे हैं, निरंतर मर रहे हैं।
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Miracles only happen if you believe in miracles.
Fortunate are those who take the first steps.
Do something instead of killing time. Because time is killing you.
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एक ऐसी जिन्दगी जिसका कोई कारण नहीं होता, कोई प्रभाव भी नहीं होता।
A life without cause is a life without effect
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यदि आप सोचते हैं कि रोमांचक कार्यों में जोखिम है, ये खतरनाक हैं तो रूटीन रोजमर्रा की नींदमेंडूबी.जिंदगी में खो जायें.. ये धीमीमौतहै.जानलेवा है।
If you think adventure is dangerous, try routine: it is lethal.
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आपको हमेशा ही यह पता होना चाहिए 'कि आखिर आप चाहते क्या हैं?'
You must always know what it is that you want
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आपके पास दो ही चुनाव हैं — पहला —आपका मन पर नियंत्रण, दूजा — आप खुद मन के नियंत्रण में रहें। 
You have two choices, to control your mind or to let your mind control you
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हमसे नफरत करने वाले, हमारे कन्फ्यूज प्रशसंक होते हैं वेा समझ नहीं पाते कि क्यों ​हमें सब पसंद करते हैं। 
Haters are confused admirers who can’t understand why everybody else likes you
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असंभव की ताक खोज फिराक में रहें। मैं हमेशा अपनी सीमाओं की तलाश में रहता हूं। अगर मैं नहीं पाता, तो इससे मेरा विश्व निरंतर फैलता बढ़ता रहता है।
Go for the impossible. I always tried to find my own limits. So far I did not find them, so my universe is in constant expansion.
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किसी दिन, शायद, यदि... ये बड़े खतरनाक शब्द हैं इनसे बचकर रहें।
'Someday'

, ‘maybe’ and ‘if’ are very dangerous words that must be avoided.




Sunday, 31 January 2021

गरीबी

गरीबी - एक फैशन. गरीब कब तक दिखेंगे ? गरीबी भौतिक होती है या मानसिक? गरीबी स्वैच्छिक है या विवशता? किताब और रोटी में किताब यदि पहले मिल जाये तो जिंदगी का पहला कायदा सीख लिया जाये। बिना पढ़े निरक्षरता ही नहीं, जीवन में दरिद्रलक्ष्मी भी विस्तार पा जाती है।
गरीबी बहुत बड़े अपराध नहीं करती, बस अपराधों की शुरूआत करती है। अमीरी की कोख से पहला अपराध ही हजार करोड़ डाॅलर से कम का नहीं होता। वह वित्तीय, आर्थिक, भौतिक, सामाजिक, स्वास्थ्य, मानवता किसी भी श्रेणी की वजह में नहीं समाता।
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जाग सके तो जाग, गरीब की टेम्पररी झोंपड़ी में, लाल पीली आग...

Thursday, 19 November 2020

Dear friends ! #Need money. #Needs #JOB/ #Naukri.

Dear friends ! #Need money. #Needs #JOB/ #Naukri. . #MA #BEd | Knowledge/Execution on #Adobe Photoshop, #InDesign, #Illustrator, #CorelDraw, EMsOffice etc. #Print #Media #Graphics and Designing | Do #English/Hindi /Punjabi #Translation | Experience little xyz type #VideoEditing on #AdobePremier | #Want to #work with any #religious #spiritual organisation | #Anywhere in #India. . Please Tell/ Message, if you have any lead....






Thursday, 12 November 2020

रट्टू तोता

 


तकरीबन महीना भर पहले की बात है। ये तोता.. जिसकी तस्वीर यहां दी गई है, हमारे परिसर में आया। इसने दो चार गिनती के शब्द रटे हुए थे, यानि स्वाभाविक ही हम सब को महसूस हुआ कि शायद किसी के घर का पला—बढ़ा, मनुष्यों के बीच रहने वाला अभ्यस्त तोता है। जिस किसी की भी बालकनी में जाता वही, फल—फ्रूट—सब्जी, भोज्य इस तोते को प्यार से परोसता। किसी ने जबरिया पकड़ने और पिंजरे का इंतजाम कर अपने यहां ही रख लेने की कोशिश नहीं की। 

दिन गुजरे और आज धनतेरस का दिन आ गया। दीपावली के अवसर पर बिल्डर के आदमियों ने परिसर के सभी ब्लॉक्स में कल ही बिजली के बल्बों की लड़ियां लटकाईं थीं। आज सुबह सभी को इस तोते की यह बात पता चली कि सभी बा​ल​कनियों में जहां भी यह तोता जा रहा है, ब​ल्बों की लड़ियों की तारें कुतर रहा है। महीने भर, सबके मनोरंजन का केन्द्र रहा यह तोता.. आज सबके गुस्से और परेशानी का सबब बन गया है। 
इस तोते की मजबूरी या विव​शता उसकी पिंजरे, मनुष्यों के बीच रहने की आदत है। मैं सोच रहा था यह वापिस — पास ही के जंगल में क्यों नहीं उड़ जाता, अपनी ही प्रजाति जाति के तोतों के झुंड में रहने क्यों नहीं चला जाता?, अपनी कुदरती आजादी में क्यों नहीं रहता? 
...

मुझे जाने क्यों तोते से संबंधित एक कहानी याद आ गई। 
एक गांव के बाहर एक अमीर आदमी रहता था। धर्म अध्ययन—अध्यापन, योग अध्यात्म से उसे बड़ा प्रेम था। गांव के बाहर अपना निवास बना रखा था ताकि लोग उसके इस काम में बाधा ना बनें। एक सुबह घर के सामने, एक ऊंचे पेड़ से के कोटर से गिरा हुआ एक तोते का बच्चा उसे मिला। उसने उसे पाल लिया। एक बड़े सुंदर से पिंजरे में उसे रखा और जो भी अध्ययन मंत्र गीत उसे प्रिय थे उन्हें सिखाने लगा। कुछ ही दिनों में तोता उसकी सिखाये कई शब्द बोलने लगा। एक दिन उस व्यक्ति को किताबें खरीदने शहर जाना था तब उसे लगा कि अब कौन इसकी देख रेख करेगा? खैर.. इस बात का इंतजाम कर वो शहर गया। शहर में, अपने कामकाज की जगह जाते हुए उसने देखा कि एक पंछी बेचने वाला कई छोटे छोटे पिंजरों में 5—10 तोतों को बेच रहा था। उसे अपना तोता याद आया।
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जब वो घर लौटा तो उसने सोचा कि हो सकता है यह तोता कभी इस पिंजरे से उड़ जाये। किसी जंगल चला जाये। पर फिर किसी शिकारी के हाथ गया तो? तो क्यों न तोते को मैं कोई/कुछ ऐसी बात सिखा दूं... ​रटा दूं कि इसे किसी जालिम शिकारी के पिंजरे में न कैद होना पड़े। यहां वहां न बिकना पड़े। इसे बचने का मौका मिल जाये, ये उड़ जाये, और लौट कर फिर कभी न आये... और सदा मुक्त रहे। 
तो उसने तोते को सिखाया— रटाया:
मिट्ठू... मिट्ठू से मिलने जायेगा
लौट को फिर यहीं आयेगा
भरोसा तो करो....

 

तोता बूढ़ा नहीं था, जल्द ही उसने यह तीन वाक्य भी रट लिये। जब यह तीन वाक्य, तोते ने भली भांति रट लिये तो व्यक्ति ने सोचा — कि मैंने जो इसे सिखाया है इसमें गलत क्या है... वैसे भी पंछी को तो मुक्त ही रहना चाहिए। यदि इसे पिंजरे में रहना होगा तो खुद ही आयेगा। उसने तोते को पिंजरे से बाहर निकाला, खुला छोड़ दिया.. मगर तोता वापिस पिंजरे में जा बैठता। तो आदमी ने कहा — चलो मुक्त रहो, और मेरे पास भी रहो। अब वह तोते से निश्चिंत था। तोता भोजन पानी के लिए नीचे आता और बाकी समय घर के सामने या अन्य पेड़ों पर उड़ान भरता, मनमौजी रटी बातें बोलता और मस्त रहता। 
फिर एक बार यूं हुआ कि तोता उसके घर कई दिनों तक नहीं आया। उस व्यक्ति ने सोचा कि चलो, पंछी है, मौज में कहीं चला गया होगा। उसने इंतजार किया पर तोता गया तो लौटा ही नहीं।
कुछ महीने बाद व्यक्ति को, फिर किताबें खरीदने शहर जाना पड़ा। लौटते हुए उसे वही तोते पंछी आदि बेचने वाला मिला, बड़ी उम्मीद से वह उसके पास पहुंचा और बोला कि क्या किसी जंगल में राम राम, गायत्री मंत्र और मिट्ठू इत्यादि बोलने वाला तोता तो नहीं दिखा। पंछी बेचने वाला बोला — भाई साहब हम तो शहर में रहते हैं... जंगली शिकारियों से पंछी खरीदते हैं शहर में बेच देते हैंं। हम खुद थोड़े ही जंगल जाकर...वगैरह वगैरह।

कई महीने बीत गये और साल भी। उस व्यक्ति का घर पुराना हो गया। छत चूने लगी। उसने मजदूर बुलाये और उन्हें घर के रिनोवेशन के काम पर लगाया। इस काम धाम से अलग एक कमरे में वो शांत हो किताबों में मग्न था। एक दोपहर उस व्यक्ति का ध्यान... दो मजदूरों की बातों पर गया—
पहला मजदूर बोला — मैं कल ही शहर गया था, हमारा मिट्ठू तो बहुत महंगा बिका, एक शहरी व्यक्ति ने उसके दो हजार रूपये दिये। 
दूजा बोला — चलो किसी काम तो आया, वरना गांव में तो उसने लोगों को परेशान कर रखा था। कहीं भी बैठ जाये मंत्र गाये, राम राम बोले और वो क्या बोलता था... 
मिट्ठू... मिट्ठू से मिलने जायेगा
लौट को फिर यहीं आयेगा
भरोसा तो करो....

.... अरे मिट्ठू टें टें कर तोतों को बुलायेगा, फसलें सब्जियां खराब करेगा, यहां वहां चीजें कुतरेगा ये तो बोलता ही नहीं था।
पहला मजदूर बोला — अरे शहरियों को क्या मतलब, उसकी आजादी से... वो तो पिंजरे में रखेंगे, उनके वास्तुदोष शांत हो जायेंगे और उनके बच्चों का मनोरंजन भी। वैसे भी, उसे तो पिंजरे में ही रहने की आदत है... पता नहीं किसने सिखा दिया था कि —
मिट्ठू... मिट्ठू से मिलने जायेगा
लौट को फिर यहीं आयेगा
भरोसा तो करो....
भरोसा क्या करना, वो तो पिंजरे में ही रहने का आदी हो गया था, समय पर खाना—पीना, बच्चों—औरतों के बीच , मनुष्यों घरों में ही रहना—बैठना, रटी रटाई बातें बोलना। 

...

किताबों में मग्न व्यक्ति को अचानक जैसे ब्रह्मज्ञान हुआ। बरसों से वह भी किताबों में मग्न है। धर्मग्रन्थों का अध्ययन अध्यापन, दूजों को बताना कि क्या करना और कैसे करना है... लेकिन वो स्वयं तो उस तोते की तरह है, जिसने उसे स्वयं ही सिखाया था कि —
मिट्ठू... मिट्ठू से मिलने जायेगा
लौट को फिर यहीं आयेगा
भरोसा तो करो....
उसने स्वयं कभी ​किताबों, भाषणबाजी और रटी—रटाई बातों से इतर मुक्ति का स्वाद नहीं चखा। ना उन बातों का उसके जीवन में, जिसे वह जी रहा है... उससे कोई सरोकार रहा।