Sunday, 31 January 2021
गरीबी
Friday, 1 January 2021
Thursday, 19 November 2020
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Thursday, 12 November 2020
रट्टू तोता
तकरीबन महीना भर पहले की बात है। ये तोता.. जिसकी तस्वीर यहां दी गई है, हमारे परिसर में आया। इसने दो चार गिनती के शब्द रटे हुए थे, यानि स्वाभाविक ही हम सब को महसूस हुआ कि शायद किसी के घर का पला—बढ़ा, मनुष्यों के बीच रहने वाला अभ्यस्त तोता है। जिस किसी की भी बालकनी में जाता वही, फल—फ्रूट—सब्जी, भोज्य इस तोते को प्यार से परोसता। किसी ने जबरिया पकड़ने और पिंजरे का इंतजाम कर अपने यहां ही रख लेने की कोशिश नहीं की।
दिन गुजरे और आज धनतेरस का दिन आ गया। दीपावली के अवसर पर बिल्डर के आदमियों ने परिसर के सभी ब्लॉक्स में कल ही बिजली के बल्बों की लड़ियां लटकाईं थीं। आज सुबह सभी को इस तोते की यह बात पता चली कि सभी बालकनियों में जहां भी यह तोता जा रहा है, बल्बों की लड़ियों की तारें कुतर रहा है। महीने भर, सबके मनोरंजन का केन्द्र रहा यह तोता.. आज सबके गुस्से और परेशानी का सबब बन गया है।मुझे जाने क्यों तोते से संबंधित एक कहानी याद आ गई।
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जब वो घर लौटा तो उसने सोचा कि हो सकता है यह तोता कभी इस पिंजरे से उड़ जाये। किसी जंगल चला जाये। पर फिर किसी शिकारी के हाथ गया तो? तो क्यों न तोते को मैं कोई/कुछ ऐसी बात सिखा दूं... रटा दूं कि इसे किसी जालिम शिकारी के पिंजरे में न कैद होना पड़े। यहां वहां न बिकना पड़े। इसे बचने का मौका मिल जाये, ये उड़ जाये, और लौट कर फिर कभी न आये... और सदा मुक्त रहे।
तो उसने तोते को सिखाया— रटाया:मिट्ठू... मिट्ठू से मिलने जायेगा
लौट को फिर यहीं आयेगा
भरोसा तो करो....
तोता बूढ़ा नहीं था, जल्द ही उसने यह तीन वाक्य भी रट लिये। जब यह तीन वाक्य, तोते ने भली भांति रट लिये तो व्यक्ति ने सोचा — कि मैंने जो इसे सिखाया है इसमें गलत क्या है... वैसे भी पंछी को तो मुक्त ही रहना चाहिए। यदि इसे पिंजरे में रहना होगा तो खुद ही आयेगा। उसने तोते को पिंजरे से बाहर निकाला, खुला छोड़ दिया.. मगर तोता वापिस पिंजरे में जा बैठता। तो आदमी ने कहा — चलो मुक्त रहो, और मेरे पास भी रहो। अब वह तोते से निश्चिंत था। तोता भोजन पानी के लिए नीचे आता और बाकी समय घर के सामने या अन्य पेड़ों पर उड़ान भरता, मनमौजी रटी बातें बोलता और मस्त रहता।
फिर एक बार यूं हुआ कि तोता उसके घर कई दिनों तक नहीं आया। उस व्यक्ति ने सोचा कि चलो, पंछी है, मौज में कहीं चला गया होगा। उसने इंतजार किया पर तोता गया तो लौटा ही नहीं।
कुछ महीने बाद व्यक्ति को, फिर किताबें खरीदने शहर जाना पड़ा। लौटते हुए उसे वही तोते पंछी आदि बेचने वाला मिला, बड़ी उम्मीद से वह उसके पास पहुंचा और बोला कि क्या किसी जंगल में राम राम, गायत्री मंत्र और मिट्ठू इत्यादि बोलने वाला तोता तो नहीं दिखा। पंछी बेचने वाला बोला — भाई साहब हम तो शहर में रहते हैं... जंगली शिकारियों से पंछी खरीदते हैं शहर में बेच देते हैंं। हम खुद थोड़े ही जंगल जाकर...वगैरह वगैरह।
कई महीने बीत गये और साल भी। उस व्यक्ति का घर पुराना हो गया। छत चूने लगी। उसने मजदूर बुलाये और उन्हें घर के रिनोवेशन के काम पर लगाया। इस काम धाम से अलग एक कमरे में वो शांत हो किताबों में मग्न था। एक दोपहर उस व्यक्ति का ध्यान... दो मजदूरों की बातों पर गया—
पहला मजदूर बोला — मैं कल ही शहर गया था, हमारा मिट्ठू तो बहुत महंगा बिका, एक शहरी व्यक्ति ने उसके दो हजार रूपये दिये।
दूजा बोला — चलो किसी काम तो आया, वरना गांव में तो उसने लोगों को परेशान कर रखा था। कहीं भी बैठ जाये मंत्र गाये, राम राम बोले और वो क्या बोलता था...
मिट्ठू... मिट्ठू से मिलने जायेगा
लौट को फिर यहीं आयेगा
भरोसा तो करो....
.... अरे मिट्ठू टें टें कर तोतों को बुलायेगा, फसलें सब्जियां खराब करेगा, यहां वहां चीजें कुतरेगा ये तो बोलता ही नहीं था।पहला मजदूर बोला — अरे शहरियों को क्या मतलब, उसकी आजादी से... वो तो पिंजरे में रखेंगे, उनके वास्तुदोष शांत हो जायेंगे और उनके बच्चों का मनोरंजन भी। वैसे भी, उसे तो पिंजरे में ही रहने की आदत है... पता नहीं किसने सिखा दिया था कि —
मिट्ठू... मिट्ठू से मिलने जायेगा
लौट को फिर यहीं आयेगा
भरोसा तो करो....
भरोसा क्या करना, वो तो पिंजरे में ही रहने का आदी हो गया था, समय पर खाना—पीना, बच्चों—औरतों के बीच , मनुष्यों घरों में ही रहना—बैठना, रटी रटाई बातें बोलना।
...
किताबों में मग्न व्यक्ति को अचानक जैसे ब्रह्मज्ञान हुआ। बरसों से वह भी किताबों में मग्न है। धर्मग्रन्थों का अध्ययन अध्यापन, दूजों को बताना कि क्या करना और कैसे करना है... लेकिन वो स्वयं तो उस तोते की तरह है, जिसने उसे स्वयं ही सिखाया था कि —
मिट्ठू... मिट्ठू से मिलने जायेगा
लौट को फिर यहीं आयेगा
भरोसा तो करो....
उसने स्वयं कभी किताबों, भाषणबाजी और रटी—रटाई बातों से इतर मुक्ति का स्वाद नहीं चखा। ना उन बातों का उसके जीवन में, जिसे वह जी रहा है... उससे कोई सरोकार रहा।
Sunday, 24 June 2018
क्या आप जानते हैं— 'सुनना' एक महान कला है।
न महान कलाओं में से है जो हमने नहीं रचीं— एक है "किसी को पूरी तरह सुनना। ध्यानपूर्वक सुनना। कान या श्रवणमात्र.. सुनना ही हो जाना।"
जब आप किसी को पूरी तरह ध्यान लगाकर सुनते हैं, तब आप...अपने आपको या अपने बारे में भी सुनते हैं। अपनी ही समस्याओं, अपनी ही अनिश्चितताओं, अपनी ही दुगर्ति दुर्भाग्य का किस्सा सुनते हैं। भ्रम, सुरक्षा की चाह और शनै:शनै: मन के पतन होने की कहानी सुनते हैं.. कि कैसे आपका मन ज्यादा से ज्यादातर यंत्रवत होते गया, कैसे आप रोबोट जैसे ही हो गये।
~ जे कृष्णमूर्ति 'सम्बंधों में जीवन' मैग्नीट्यूड आॅफ माइंड
Wednesday, 4 April 2018
एक खूब सूरत पंजाबी रूहानी सा लोकगीत - मिट्टी दा बावा
Monday, 31 October 2016
एक दिया
दुख या तो भूतकाल होता है या भविष्यकाल. जो वर्तमान है वो ना तो दुख होता है ना सुख. लेकिन जब हम जो अभी सामने है, उसका सामना नहीं कर पाते तो बात सुखद या दुखद में रंग जाती है. जब हम जो अभी सामने ही है उसे टालकर अतीत में धक्का मारकर गिरा देते हैं या ख्यालों ख्वाबों की पतंग के कंधे पर बैठा उसे भविष्य में प्रक्षेपित करते हैं तो बात विकृत हो जाती है...कुरूप भ्रष्ट हो जाती है.
सोशलसाईट्स पर कहीं भी जाओ आस्तिक नास्तिक मिलेंगे, हिंदू मुसलमान मिलेंगे, राष्ट्रवादी और देशद्रोही मिलेंगे, पक्ष या विपक्ष वाले मिलेंगे... अतियों पर खड़े लोग मिलेंगे या अतियों की ओर सरकते हुए.. बीच में खड़े होकर कबीरा खड़ा बाजार में लिए लुकाटी हाथ... इस मुद्रा में कोई नहीं दिखता... दिखता भी है बस लिखता लिखता ही दिखता... नाना पाटेकर बोला मिट्टी की, बाती की, तेल की, और आखिरकार लौ की, आग की कौन जाति होती है?
ज्ञानीजनों की संगत मुश्किल है क्योंकि ज्ञान के साथ अहं फ्री मिलता है. निपट ज्ञानी नहीं मिलेगा उसके साथ कुछ ना कुछ श्लेष्मा अलंकृत होता है जो उसे ज्ञानी नहीं रहने देता-
गुजरात में नया साल दिवाली से शुरू होता है... तो देखते हैं रोज नये दिये सी एक नई ब्लॉग पोस्ट
Sunday, 24 January 2016
फेसबुक पर चिपको आंदोलन
Saturday, 9 January 2016
बस यूं ही
आग कई तरह की होती है
वैसी भी... जैसी कोई ना चाहे
सब चाहते हैं
दीपक सोने का हो
बाती, अभी—अभी उतरे कपास के फाहे की हो
श्यामा गाय से पाया- पिघला कुनकुना घी हो
और किसी तीर्थ की पवित्र अग्नि से
सुगंधित दिया रोशन हुआ हो
पर सबके
इतने सारे इंतजाम नहीं हो पाते
इसलिए
आग कई तरह की होती है
वैसी भी... जैसी कोई ना चाहे
मिट्टी के तेल से गंधाती कुप्पी
साईकिल की ट्यूब की नोजल में सजी
गुदड़ियों से निकली चिंदियों की बाती
गंगू तेली की बीड़ी से उपजी आग
दिये का ऐसा इंतजाम
रौशनी कम देता है
काला गंधाता धुंआ ज्यादा
धुंआ—रामायण की चौपाईयों का शोर
धुंआ—शोर में तुलसी कबीर के रटे दोहे गाने की होड़
धुआं—अमावस की रात में जप
धुंआ—बर्फ बारिश आग में तप
धुआं—प्रोफेसरों के तर्क
धुआं—बुद्धिजीवियों का जुबानी तेजाबी अर्क
धुआं—विज्ञानसम्मत सुबूत
धुंआ—बरसों वही कथन..रगड़ रगड़ मजबूत
कभी तो आपका भी
जाना हुआ होगा शमशान
वहां की आग सबसे महान
ये आग सदा साथ रहती है
आपकी पैदाइश से
किसी के मरने तक
क्योंकि हम
मौत से तो हमेशा बेखबर होते ही हैं
हमें जीवन का होश भी नहीं होता
कब फूल से पैदा हुए
कब कोंपलों पत्तियां
डाली शाखों में बदलीं
कब हम फूले फले
कब पतझड़ आया
कब सूखी पत्तियों से उड़ चले
तो मौत की याद की आग
सीने में सदा सुलगाये रहो
वो सब जो देह है
कभी नहीं था
वो सब जो देह है
कभी नहीं होगा
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इक ना इक शमां, अंधेरों में जलाये रहिये
सुबह होने को है, माहौल बनाये रहिये
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