ऐसे ही यादें हैं, जो मनुष्य जीवन बनाती हैं। मृत्युलोक में पैदा होना, किसी पाप का परिणाम... या शाप जैसा है। इसमें जीने को मिलता है क्योंकि मृत्यु सुनिश्चित होती है। इसमें जो भी मिलता है, खो जाने, छीन लिए जाने को मिलता है। ऐसी कोई चीज नहीं जो हमेशा आपके पास रहे, जिससे आप स्वयं को जोड़कर, स्थायी ‘‘आप’’... अमर ’‘मैं’’ बन जाएँ। ये अस्थायी चेतना, आपका होना, आपका अस्तित्व ही विचार मात्र, सपना या कल्पना है। पराये अजनबी अनजान हीं नहीं, जिनसे आपके रक्त संबंध हैं... वह भी उतने ही अजनबी, अनजान पराये हैं। क्या आप समझ पाते हैं कि, अब आपकी चेतना का आपसे क्या रिश्ता है?? ये चेतना क्या है?
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