Wednesday, 24 August 2022
मन Mind
जब कोई गुजर जाता है
मंडराता है आस-पास
जो हैं, उन यादों में रहता है
जो हैं, उन सपनों में आता है
अपना ना होना जताता है
कहता है - अब देह नहीं हैं।
जहाँ रहती यादें, वो शीश नहीं
वो गेह नहीं है।
जिन यादों से मन बनता है।
जिस मन से दुनियां बनती है।
जिस मन से जीवन चलता है।
जब कोई गुजर जाता है
जीवन मृत्यु की अनिश्चितता के परे
जीवन मृत्यु की अनिश्चितता से उपजे भय से परे
क्या वाकई वो शांति पाता है?
या यादें सब संग जाती हैं
या सारा मन संग जाता है
यादें फिर ढूंढती हैं कोई शीश-कोई देह, कोई गेह
फिर फैलता है व्यापार पसंद नापसंद नफरत नेह
लौट आता है
फिर
जीवन मृत्यु की अनिश्चितता में
जीवन मृत्यु की अनिश्चितता से उपजे भय में
क्या वाकई वो शांति पाता है?
2 comments:
बेहतरीन रचना
बहुत सुंदर
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