बुधवार, 9 सितंबर 2009

तुझ पर यकीं के लाख बहाने

मुझ पर शक की लाख वजह हैं
तुझ पर यकीं के लाख बहाने

जर्रा जर्रा तेरा जवाब है
झूठ हैं सारे सवाल सयाने

तू गढ़ता है तू बुनता है
नौ रंगों के ताने बाने

मेरा होना इक खयाल सा
दुनियाँ सारी ख्वाब बेगाने

क्यों तय करें मक्सद ए जिन्दगी
कदम कदम हैं तेरे निशाने

खुशबू, जमाल हो, इश्क, बन्दगी
कोई जुबां हो तेरे फसाने

6 टिप्‍पणियां:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

मुझ पर शक की लाख वजह है
तुझपर यकीं के लाख बहाने !

सुन्दर भाव !

रंजना ने कहा…

वाह !! बहुत सुन्दर रचना...सुन्दर भाव ,सुन्दर अभिव्यक्ति..

bhuppi ने कहा…

wah wah......wah wah........

Himanshu Pandey ने कहा…

शुरुआत ने ही बाँध लिया । खूबसूरत रचना । धन्यवाद ।

महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma ने कहा…

बहुत अच्छा

Udan Tashtari ने कहा…

उम्दा रचना.

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