सूखे पत्तों सा उड्ता हूं
जिन राहों पर आखिर बार
तुम मुझे तोड़ कर फेंक गए
मेरी आंखों में तुम ही तुम
मेरी सांसों में तुम ही तुम
मुझे खबर नहीं ऐ जादूगर
तुम कैसे मुझको देख गए
तेरी याद से मैं आजाद नहीं
दिल शाद नहीं नाशाद नहीं
देख कुछ भी तेरे बाद नहीं
लिख दीवानगी के लेख गए
हथेलियों में तलाशता रहता हूं
तुझसे रिश्तों की लकीरे मैं
थे कैसे गुनाह किए मैंने
कि मिट किस्मत के रेख गए
इस ब्लॉग पर रचनाएं मौलिक एवं अन्यत्र राजेशा द्वारा ही प्रकाशनीय हैं। प्रेरित होने हेतु स्वागत है।
नकल, तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करने की इच्छा होने पर आत्मा की आवाज सुनें।
2 टिप्पणियां:
तुम ही तुम........ तुम ही तुम
जब ऐसा होने लगता है तो ऐसी प्यारी कविता जन्म लेती है......
आपको बधाई !
aaj bhi un rahon per udtahun sukhe patton saa ...jaha tum chhod gaye the....wah ..bahut khoob
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