बुधवार, 16 सितंबर 2009

वो बात न कर

जो दिल की जुबां से था बेगाना,
उस पागल की बात न कर।
जो तरसती धरती छोड़ गया,
उस बादल की बात न कर।।

रह-रह के रात गए बजती है,
हाए! उस पायल की बात न कर।
जो गया तो लौट के आया नहीं,
उस संगदिल की बात न कर।।

क्या मिलता है ख्वाबों यादों में,
उस हासिल की बात न कर।
जो निभाई है अपने वादों से,
उस मुश्किल की बात न कर।।

सारे जख्म जिस्म पर दिखते नही,
तू मुझ घायल की बात न कर।
हर्फ हर्फ में उसका तसव्वुर है,
तू शेर-गजल की बात न कर।।

नहीं जाने वीराने, क्या थी घुटन,
तू बस महफिल की बात न कर।
नहीं पूछा हुआ क्या कदम-कदम,
छोड़! ....बस मंजिल की बात न कर।।

जिससे टकरा-टकरा डूबे
तू उस साहिल की बात न कर
न पूछ क्या गुजरी ‘‘अजनबी’’ पे
बस आ गले मिल, कुछ बात न कर

1 टिप्पणी:

mehek ने कहा…

waah jazabaaton ka sailab,sunder rachana.

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