मंगलवार, 22 सितंबर 2009

झुमरी तलैया में।

हममें से बहुत सारे मनुष्य
उड़ना चाहते हैं।

या कम से कम
बचपन में दौड़ते, उछलते, कूदते समय तो
उनकी यह इच्छा
एक बार प्रकट होती ही है
कि काश!
वो भी किसी पक्षी की तरह उड़ पाएं।

पृथ्वी के असीम
रंग बिरंगे विस्तार में

सागर के किनारों से
बहुत भीतर तक

दूर आकाश में
पर्वतों की ऊंचाईयों
बादलों की गहराईयों तक

पर,
फिर पता नहीं क्या होता है
आदमी के साथ।

चिड़िया का भी परिवार बनता है
होते हैं-
उसके भी कई बच्चे
निभानी पड़ती है
उसे भी सारी दुनियादारी।
खुद और अपने परिवार को
खाने-पिलाने,
ढंकने सुलाने के लिए।

पर,
फिर पता नहीं क्या होता है
आदमी के साथ।

उलझ जाता है वो
किस चक्कर में
कि सारा दिन रात
नौकरी धंधे के अलावा
सारे सपने मर जाते हैं

न जाने क्यों, वो दो पैरों पर
चलने लायक भी नहीं रह जाता
रेंगने सा लगता है

और रेंगने वाले कीड़े मकोड़ों को
मौत की चील
कहीं भी,
कभी भी झपट ले जाती है।
हार्टअटैक,
दुर्घटना,
हत्या,
किसी भी बहाने से।
दिल्ली में,
बैंकाक में,
झुमरी तलैया में।

1 टिप्पणी:

Arshia Ali ने कहा…

जिंदगी को आपने बहुत करीब से देखा है।
( Treasurer-S. T. )

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