12 तारीख को अखबार में पढ़ते हैं कि ‘‘टीम इंडिया’’ दुनिया में नं 1 क्रिकेट टीम बन गई है और उसी रात रात 10 बजे भारतीय टीम के बारह बज जाते हैं। विश्व की नं 1 भारतीय क्रिकेट टीम को श्रीलंका द्वारा 139 रन से रौंद दिया जाता है।
क्रिकेट की तरह हाॅकी, लाॅन टेनिस, बाक्सिंग, कुश्ती, बेडमिंटन, स्कवैश, गोल्फ, शतरंज जैसे खेलों में भी भारतीय खिलाड़ी फाइनल -सेमीफाइनल तक पहुंचते हैं और ढेर हो जाते हैं।
एक अरब की रिकार्ड संख्या, भारतीय जनता को यह अनुभव उसी तरह लगता है जैसे एक स्वादिष्ट भोजन के बाद भयंकर खट्टे और गंदे अहसास वाले डकार का आना। खाया गया पूरा का पूरा गले तक आ जाता है, पानी और पेट में बनी गैस, नाक से उफन दिमाग तक चढ़ जाते हैं।
हमारा इतिहास इस दर्दनाक अहसास का कई बार गवाह रहा है।
महाराणा प्रताप ने साम्राज्यवादियों को कई बार मुँह तोड़ जवाब दिया पर आखिरकार अपनी ही आंखें निकलवा बैठे।
विदेशी आक्रांताओं का कई बार मुँह तोड़ देने के बावजूद एक लुटेरा हमारी समृद्धि के प्रतीक सोमनाथ मन्दिर को लूट ले जाता है और उसमें हम पर शासन की सामथ्र्य के बीज अंकुरित होने लगते हैं।
हमारे देश की आजादी का पकवान अभी एक रात दूर ही था कि पाकिस्तान के जन्म के गंदे डकार ने उम्र भर के लिए सड़ांध हमारे जहन में भर दी।
आजादी मिलने के पकवान की सुगंध से अभी हमारे नथुने पूरी तरह भरे नहीं थे कि किसी ने सत्य के प्रयोगों की राह चलने वाले हमारे महात्मा, गांधी को गोलियों से निकले शब्द ‘‘हे राम’’ बोलने को विवश कर दिया गया।
श्रीलंका में तमिल आतंकियों का जोर चरम पर था और कभी भी एलटीटीई चीफ प्रभाकरन श्रीलंका का सर्वेसर्वा बन सकता था, राजीव गांधी ने भारतीय सेना भेजी और श्रीलंका को पुनः सुरक्षित शांत क्षेत्र बनाया। मालदीव मंे तख्ता पलट की घटनाओं को भी हमारे सैनिकों ने रोका।
आईटी क्षेत्र के बीजों और पौध के पोषक युवा शक्ति के प्रतीक राजीव गांधी 21वीं सदी के सपनों को उतारने की ओर कुछ कदम चले ही थे कि तमिल आतंक रूपी नागों को कुचल कर छोड़ देने का खामियाजा भुगतना पड़ा। राजीव गांधी की देह की तरह हमने अपने सपनों के चिथड़े उड़ते देखे।
पोकरण परीक्षण की उपलब्धि की गलतफहमी से अभी पूरी तरह उबरे नहीं थे कि भारतीय वैज्ञानिकों ने ही उसे एक नाटक की तरह पेश करना शुरू कर दिया। हमारी परमाणुशक्ति सामथ्र्य पर फिर सवाल हैं?
बंगाल की खाड़ी को अपनी आत्महत्या का तीर्थ बनाने वाले भारत के फोकस-फुस्सी राॅकेटों की लीक से हटकर एक चन्द्रमा की ओर बढ़ गया तो भारतीय वैज्ञानिकों ने इसे चन्द्रयान अभियान का नाम दे दिया। विश्व के वैज्ञानिक ऐसे किसी भी अभियान की आयु 12 या 14 महीने से ज्यादा नहीं मानते पर भारतीय वैज्ञानिकों ने इसके 2 साल तक सफलता का स्वाद देने की भविष्यवाणी कर 1 अरब जनों में स्वादिष्ट खाद्य की स्वाद की लार को आधार दिया। पर इस बार भी हमें खट्टे, बदबूदार और गंदे डकार का शिकार महज 10 महीने बाद ही बना दिया गया। चन्द्रयान खत्म।
दरअसल हमारे देश की कोई फिल्मी हीरोइन विश्व मंच पर बाद में आती है चुम्मा कोई पहले ही ले लेता है। या जुम्मे से पहले ही चुम्मे की ताक में कोई न कोई खड़ा ही रहता है।
तो क्या सफलता या विजय को पाना और सतत बनाये रखना भारत के सन्दर्भों में प्रासंगिक नहीं?
विश्व में हम जब भी ऊंचाइयों को प्राप्त करें जाने कौन या किसकी नजर लग जाती है?
पता नहीं हम दुष्टों के हाथ-पाँव तोड़ कर या नागों के सिर कुचल कर छोड़ क्यों देते हैं, अग्नि संस्कार क्यों नहीं करते? ये सर या धड़ कटे राहू केतु या कुचले हुए काले शनि हमारी शांति की कुण्डली में बार-बार उठापटक करते रहते हैं।
दूसरी बात, राम ने रावण का अंतिम संस्कार तो किया पर सोने की लंका विभीषण को दे दी। अब विभीषण शब्द के अर्थ तो आप भली भांति जानते ही हैं। रावण को कैसे मारा जाय यह विभीषण ही जानते हैं और ज्यादा सच ये है कि विभीषण जिसका भाई या दोस्त हो उसे प्राणों की चिंता तो हमेशा ही करनी चाहिए। विभीषण का मतलब ये भी है कि वो आपका अपना ही रिश्तेदार है, प्रिय संबंधी है और यह भी जानता है कि आपके सर्वनाश के श्रेष्ठ उपाय क्या हैं?
भारत में रामराज्य के समय से विभीषणों को आश्रय दिया गया है। विभीषणों की पीढ़ियां की पीढ़ियां पलती रही हैं और भारत में भी कई सोने की लंकाएं खड़ी हो गई हैं। महाराणा प्रताप की आंखों को निकलवाने वाला जयचंद, विभीषण की पीढ़ियों से ही था। भारत में अंग्रेजों का सैकड़ों वर्षों का कार्यकाल ऐसे कई विभीषणों की सक्रिय उपस्थिति का जीता जागता सुबूत था।
आज भी भारत इन विभीषणों से परेशान है। पाकिस्तान की ओर से आते हैं तो इन्हें आतंकवादी कहा जाता है। बांग्लादेश से आएं तो शरणार्थी कहलाते हैं। भारत के अंदर नक्सलियों के रूप में सक्रिय रहते हैं।
ये किसी भी सोने की लंका को नेस्तनाबूद करने में अपने पूर्वज से कई गुना शक्तिशाली हैं। अस्त्रों शस्त्रों से लैस होनेके अतिरिक्त इनके अन्य रूप भी हैं।
भारतीय सेना सहित कौन सा ऐसा मंत्रालय है जिसमें भ्रष्ट विभीषणों की प्रभावी पकड़ नहीं हो। कई भारतीय विभीषणों का धन स्विस बैंकों मंे जमा है। विभीषण जेलों में हैं, जेलों से बाहर हैं। राम का नाम लेकर विभीषण चुनाव लड़ते हैं पर असली मक्सद तो सोने की लंका खड़ी करना होता है।
लेकिन भारतीयों की उदारता की कोई हद नहीं। विभीषण का चरित्र इतना पसंद है कि इटली से विभीषण का स्त्री संस्करण आयात किया गया। क्वात्रोची से साक्षात जीवंत संबंध पाये जाने के बावजूद भारतीय कानूनों की धुंध भारतीयों के मानस को ठंडा और अस्पष्ट करने में हर बार सफल रहती है। कानून गरीब और अक्षम के लिए हैं।
भारत देश के संदर्भ में एक ही चीज निरंतर सफल और सतत जारी रही है। विषम वितरण व्यवस्था और दलाली धर्म के अनुयायियों की बढ़ती जनसंख्या ने अन्य सारे वर्गों को अल्पसंख्यक कर दिया है। आत्महत्या कर रहे कंकालनुमा किसानों की तस्वीरें मिल जाती हैं, इथियोपिया की भुखमरी की तस्वीरें भारत में भी आम मिल जाती हैं। सपेरों और भुखमरों के देश के रूप में ही पहचाने जाने में विदेशियों को आज भी सफलता मिलती है। पराजय हो या दास बनकर जीना, वर्षाें हम आकंठ अलाली में डूबे रहना चाहते हैं। क्या विजय के बाद विराम हमारी नियति बन गई है?