शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009
हम जंगलों का कानून भी भूल गये हैं
सुना है -
जंगलों का भी कोई कानून होता है।
सुना है,
शेर का जब पेट भर जाये,
वो हमला नहीं करता।
सुना है -
हवा के तेज झोंके,
जब दरख्तों को हिलाते हैं,
तो मैना अपने घर को भूल कर,
कौवै के अंडों को,
परों में थाम लेती है।
सुना है -
किसी घोंसले से
जब किसी चिड़िया का बच्चा गिरे तो
सारा जंगल जाग जाता है।
सुना है -
कोई बाँध टूट जाये,
बाढ़ सी आये
तो किसी लकड़ी के तख्ते पर
गिलहरी, साँप, चीता और बकरी साथ होते हैं
सुना है जंगलों का भी कोई कानून होता है।
ओ परम शक्तिवान परमात्मा हमारे देश में भी,
अब जंगलों का कोई कानून कायम कर।
(यह कविता हमारी नहीं है, पर बेहतरीन है)
4 टिप्पणियां:
इस बेहतरीन कविता को हम तक पहुंचाने का शुक्रिया।
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बेहतरीन रचना
wakai behtreen kavita hai.........bahut hi sashakt.......shukriya padhwane ke liye.
kash ! ham bhee maina, shair, bhed yaa bakree-kutte hote !
tab itna tees,itnee khalees to nahin hota
apne hone par
bahut umda... salam
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