Wednesday 28 October 2009

कोई इशारा करो।

बुझ जाये न आरजू की शमां,
जब तक बलती है धुंआं-धुंआं,
धड़कन का साज है रमां-रमां,
कोई इशारा करो।

तन्हाई की रातों में,
खुद से बातों-बातों में,
ऐसे बहके हालातों में,
कोई इशारा करो।

उम्रों की कई सलवटें तय की,
दीवानगी की कई सरहदें तय की,
अब वक्त ही यही तलब है कि
कोई इशारा करो।

जमाना दुश्मन हो गया है,
तेरी चाहत ने संगसार किया है,
मरकर तुमको प्यार किया है,
कोई इशारा करो।

6 comments:

वाणी गीत said...

मरकर तुमको प्यार किया है कोई इशारा करो ...मर कर प्यार किया ...!!

अजय कुमार said...

अच्छा है , सुन्दर है , बधाई

परमजीत सिहँ बाली said...

बढ़िया रचना है।बधाई।

ओम आर्य said...

प्यार मे डुबी रचना...........बेहतरीन अभिव्यक्ति .....!

Unknown said...

gazab hai.
उम्रों की कई सलवटें तय की,
दीवानगी की कई सरहदें तय की,
अब वक्त ही यही तलब है कि
कोई इशारा करो।
aur kya shesh rah gaya.....................

waah !

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है शुभकामनायें

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