Friday 16 October 2009

दीवाली और दि‍ल की बात












दीवाली और मेरा दिलबर

हम कैसे मनाएँ दीवाली,

सब उजाले उनके साथ हैं,
उनका हर दिन पूनम सा,
अपनी तो अमावस रात है।

हैरान हैं उनके इशारों से,
हाँ-ना के बीच ही झूलते हैं,
अब दीवाना करके छोड़ेंगे,
जो उलझे से जज्बात हैं।

रंगीन बल्बों की जो लड़िया,
उनकी मुंडेर पर झूलती हैं,
उनके जलने बुझने जैसे,
अपने दिल के हालात हैं।

सुना! आयेगा घर दिवाली पर,
दिल में फुलझड़िया छूटती हैं,
मेरी दीवाली से पहले ही,
जगमग-जगमग हर बात है।

वो जब भी मुझसे खेलता है,
बस मैं ही हमेशा जीतता हूं,
वो है मेरे सामने जीत मेरी,
मेरी खुशी कि मेरी मात है।

वो खुदा तो हरदम संग मेरे,
दीवाली हो या दीवाले
वो आंसू में, मुस्कानों में,
वो ही सारी कायनात है।






आदरणीय मित्रजनों,
आप सबको दीपावली पर्व की हार्दिक बधाईयाँ।
सर्वे वे सुखिनः सन्तु , सर्वे सन्तु निरामयः
सर्वे भद्राणि पश्यंतु , मा कश्चितदुखभागभवेत
इस श्लोक का अर्थ आधुनिक दीपावली पर्व के रूप में किया जाना चाहिए।
सर्वे वे सुखिन: सन्तु का अर्थ है कि सभी सुखी हों। लेकिन यदि दुनियां में पांच अरब तरह के लोग हैं तो सुखों की संख्या उसकी पांच अरब गुना ही होगी। सबके अपनी-अपनी तरह के सुख हैं।
जो भूखा है वो सोचता है कि मरा जा रहा हूं, कुछ खाने-पीने को मिले तो शरीर में जान आये और चलफिर फिर पायें।
जो पैदल चल रहा है वो सोचता है साईकिल मिल जाये तो किलोमीटर्स का सफर मिनटों में तय कर डालूं।
जो साईकिल से सफर करता रहा है, वो मोटरसाईकिल वालों को देखता है कि यार कब तक मैं मोटरसाईकिलों कारों के पीछे धुंआ निगलता हुआ पैडल मारता रहूंगा, मोटरसाईकिल मिले तो मैं भी हवा-हवाई सफर करूं।
मोटरसाईकिल वाला ज्यादा मुश्किल में होता है- क्योंकि कार आती है लाख रूपये की, कई लोगों का तो जन्म निकल जाता है लाख रूपये कमाते-कमाते। फिर कार खरीद कर गैरेज में खड़ी करने से तो और भी दुख होगा न, चलाने के लिए 50 रू प्रति 10-15 किमी पेट्रोल का प्रबंधन आसान खर्च थोड़े ही न है।
कारधारक हवाई जहाजों के किराये देखता है और यह कि फलां दोस्त कितना अक्सर हवाई यात्राओं का कहां कहां सफर कर चुका है।
जो हवाई जहाज से उड़ रहा है वो भी चांद की यात्रा के सपने पाल रहा है।
तो कहने का मतलब साफ होता है कि सुख अपनी-अपनी औकात के हिसाब से होते हैं।
लेकिन इस श्लोक में शायद उन सुखों की नहीं असली सुख की बात कही गई है असली सुख है, कि सुख को भोगने वाला शरीर, मन निरोग रहें, निरामय रहें।
कोई स्वस्थ रहे इससे बड़ी कोई अमीरी नहीं है।
अस्वस्थ हैं, कोमा में पड़े हैं, शरीर की गतिविधियां मशीनी हो गई हैं, रोज लाखों- करोड़ों रू फंुक रहे हैं लेकिन कानूनी वैज्ञानिक रूप से से आप जीवित हैं, तो आप इसे जीवित रहना या सुख कहेंगे?
इससे भला तो वो बीमार अच्छा है इलाज न करवा पाने के कारण परमात्मा को पुकार ले, देहत्याग दे।
तो निरामयता सुख है।
साथ ही कहा गया है - सर्वे भद्राणि पश्यंतु। अब आप अकेले स्वस्थ सबल छुट्टे सांड की तरह इधर-उधर सींग मारते घूम रहे हों तो इसमें निरामयता का सुख नहीं है।
श्लोक के ऋषि कहते हैं - सर्वे भद्राणि पश्यंतु। मैं अकेला ही नहीं सभी लोग स्वस्थ हो जायें। सभी लोग तन मन से यथार्थतः स्वस्थ सुंदर दिखने वाले हो जायें।
यह बात ही है जो हर दीवाली पर सबको विचारनी चाहिए।
आपके घर पर रंग बिरंगों बल्बांे की लड़ियाँ जगमगा रही हैं, दिये जल रहे हैं, मिठाईयों पकवानों का आदान प्रदान चल रहा है इसी बीच आपके द्वार पर कोई कंगला पुकारता है और आप उसे लक्ष्मी के स्वागत में तैयार द्वार से हट जाने के लिए दुत्कार देते हैं, यह दीवाली का सच्चा भाव नहीं!
आज तक का इतिहास और आपकी उम्र भर का होश गवाह रहे हैं कि कभी कोई लक्ष्मी सजधजकर आपके द्वार पर आपको अमीर करने नहीं आ गई। परमात्मा की शक्लें पहचानने में नादानी नहीं करनी चाहिए।
श्लोक में तो इससे भी आगे की बात कही गई है कि सब लोग सुखी, स्वस्थ और संुदर ही न हों बल्कि किसी को किसी तरह का कोई दुख न हो।
पिछली दीवालियों के पन्ने पलट कर देखिये क्या सारी पिछली दीवालियों पर आपके सम्पर्क में या आपका कोई रिश्तेदार या अन्य, क्या ऐसा हुआ है कि कोई बीमार हो और आप दीवाली के पूजा-पाठ छोड़कर उसकी पूछ परख करने गये हों।
दीवाली पर यह श्लोक बांचना ही नहीं, अपनी सामथ्र्य भर किसी छोटे से छोटे रूप में इसे अमल में लाने पर ही दीवाली, दीवाली होगी।
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जैसे ही गर्मी बीतती है और बारिश का मौसम शुरू होता है या जैसे ही बारिश का मौसम गुजरता है और सर्दियों का आगमन होता है - इस संचरण काल में हमें सांस की तकलीफ होने लगती है।

दीवाली की सफाईयाँ-पुताईयाँ शुरू हुईं तो उठे धूल और चूने, पंेट्स, तारपीन के तेल की गंधों से सांस भारी भारी चलने लगी। दवाईयों के नियमित खानपान के बावजूद हमारी, रात की नींद पिछले 7 दिनों से गायब है। दमे, सांस की तकलीफ झेल रहे लोगों के लिए दीवाली एक दर्दभरा त्यौहार है।

आज अखबार में पढ़ा कि दीवाली पर लगभग 40 प्रतिशत लोग जलते झुलसते हैं। धूल धुंए, शोर को झेलते नवजात बच्चों, शिशुओं और वृद्धों, अबोले वृक्ष, पशु, पक्षियों की विवशता की भी कल्पना करें।

जब फुलझड़ियां, अनार या चकरियां चलती हैं तो उठते धुंए का किस पर क्या प्रभाव पड़ता होगा ये सोचें। राॅकेटों से परेशान कबूतरों, बम पटाखों की लड़ियों से सताये गये गली के कुत्तों, गायों या अन्य प्राणियों का दुख समझें। पटाखों का शोर कानों के पर्दे फाड़ने के लिए जरूरत से ज्यादा है।

पिछली दीवाली पर घर के सामने ही खड़ा, बारह महीनों पानी से भरे नारियल टपकाने वाला हरा-भरा और प्रातः उठकर देखने पर अपनी हरियाली से हिल हिल कर गुडमार्निंग करने वाला नारियल का पेड़, अपने शीर्ष पर जा घुसे राकेट से धू-धू कर जल गया। जब तक फायर बिग्रेड वाले आते कोंपले निकलने वाला स्थान राख हो चुका था। आज वर्ष भर बाद भी कोंपले उठकर संभलती दिखाई नहीं देतीं।

माना की दुनियां भर की मंदी में आपकी अमीरी दिन दुगुनी रात चैगुनी बढ़ रही है पर इसका उन्मादपूर्ण प्रदर्शन क्या जरूरी है? गरीब तो वैसे ही परेशान है कि पटाखे खरीदेगा या खुद एक पटाखे, फुस्सीबम सा बिना चले झुंझलाया सा खत्म हो जायेगा।
वृद्धगृहों, विवश महिला सरंक्षणगृहों, अनाथालयों, अस्पतालों, जेलों, सीमा पर विषम परिस्थितियों में तैनात सैनिकों की परिस्थितियों को याद करें, फिर दीवाली मनायें।
पटाखे फुलझड़ियां चलाने के लिए घर, संकरे स्थानों कि प्रयोग से बचें, खुले मैदानों का प्रयोग करें। इंटरनेट अखबारों पत्रिकाओं के इस संबंधी ज्ञानवर्धक लेखों को पड़े होश में आयें। क्योंकि होश से बड़ा कोई पुण्य, त्यौहार नहीं है। बेहोश होकर बम पटाखों से हिंसाभाव, रोमांचपूर्ण पागलपन फैलाने से बड़ा कोई पाप नहीं।



4 comments:

संजय भास्‍कर said...

दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ...जो भी हो जैसी भी हो आपकी रचना अच्छी लगती है..बधाई!!!

FROM

SANJAY KUMAR
HARYANA
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

संजय भास्‍कर said...

bahut hi sunder

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!! आपको भी मुबारक हो.. :)


सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

-समीर लाल ’समीर’

Mishra Pankaj said...

दीपो के इस त्यौहार में आप भी दीपक की तरह रोशनी फैलाए इस संसार में
दीपावली की शुभकामनाये
पंकज मिश्र

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