शनिवार, 7 नवंबर 2009

नई तरकीबें




मेरी दीवानगी की हदें, अज़ब सी चीजें ढूंढती हैं
ख़्वाबों के तहखाने में, जिन्दा उम्मीदे ढूंढती हैं

मसीहा भी तैयारी से, आते हैं इन्सानों में
मालूम उन्हें भी होता है, क्या सलीबें ढूंढती हैं


हजारों दिवालियां चली गई, पर राम नहीं लौटे
नन्हें चिरागों की रोशनियाँ, अब नई तरकीबें ढूंढती हैं


बिना ब्याहे संग रहना, और माई-बाप से तंग रहना
जाने क्या? कैसे रिश्ते? अब तहजीबें ढूंढती हैं


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15 टिप्‍पणियां:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

हजारों दिवालियां चली गई, पर राम नहीं लौटे
नन्हें चिरागों की रोशनियाँ, अब नई तरकीबें ढूंढती हैं


बिना ब्याहे संग रहना, और माई-बाप से तंग रहना
जाने क्या? कैसे रिश्ते? अब तहजीबें ढूंढती हैं

bahut hi khoobsoorat panktiyan hain.....

achchi lagi aapki yeh rachna....

सदा ने कहा…

हजारों दिवालियां चली गई, पर राम नहीं लौटे
नन्हें चिरागों की रोशनियाँ, अब नई तरकीबें ढूंढती हैं

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना,बधाई ।

नीरज गोस्वामी ने कहा…

मसीहा भी तैयारी से, आते हैं इन्सानों में
मालूम उन्हें भी होता है, क्या सलीबें ढूंढती हैं

वाह...वाह...क्या बात है...बहुत अच्छी रचना है...लिखते रहें...
नीरज

M VERMA ने कहा…

नन्हें चिरागों की रोशनियाँ, अब नई तरकीबें ढूंढती हैं
तरकीबों का ही तो आसरा है
बहुत खूब

Pawan Kumar ने कहा…

मसीहा भी तैयारी से, आते हैं इन्सानों में
मालूम उन्हें भी होता है, क्या सलीबें ढूंढती हैं


हजारों दिवालियां चली गई, पर राम नहीं लौटे
नन्हें चिरागों की रोशनियाँ, अब नई तरकीबें ढूंढती हैं


बिना ब्याहे संग रहना, और माई-बाप से तंग रहना
जाने क्या? कैसे रिश्ते? अब तहजीबें ढूंढती हैं

बस इतना ही कहूँगा......बेहतरीन ग़ज़ल
माशूका से बातचीत से ग़ज़ल कैसे आगे निकली है...यही चुनौती है हमारे सामने
नए ख्याल......नयी बात.......खूबसूरत एहसास....

सुनीता शानू ने कहा…

अरे नीरज जी यह लिखी किसने है? बहुत खूबसूरत लाजवाब बहुत अच्छा लगा पढ़ कर हम तो नीरज नाम पर क्लिक करके यहाँ तक पहुँचे और यहाँ कोई अजनबी... कौन है?

daanish ने कहा…

ek achhee aur shaandaar rachnaa ...
Mesihaa aur Ram wale bnd bahut
prabhaavshaali haiN
aapki aamad ka shukriyaa .

Manish Kumar ने कहा…

बिना ब्याहे संग रहना, और माई-बाप से तंग रहना
जाने क्या? कैसे रिश्ते? अब तहजीबें ढूंढती हैं

अच्छा लगा कि आपने इस शेर में आज के समाज की विसंगतियों को जगह दी।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

हजारों दिवालियां चली गई, पर राम नहीं लौटे
नन्हें चिरागों की रोशनियाँ, अब नई तरकीबें ढूंढती हैं

IS KALYUG NE TO RAAM KO HAMESHA HAMESHA KE LIYE BANVAAS DE DIYA HAI ... LAJAWAAB SHER HAI ...

बिना ब्याहे संग रहना, और माई-बाप से तंग रहना
जाने क्या? कैसे रिश्ते? अब तहजीबें ढूंढती हैं

YE KAISI HAIN TAHJEEBE JO APNI PAHCHAAN KHO RAHI HAIN .....

BAHOOT GHRE SHER HAIN .... SAMAAJ KA AAINA HAIN .....

रश्मि प्रभा... ने कहा…

हजारों दिवालियां चली गई, पर राम नहीं लौटे
नन्हें चिरागों की रोशनियाँ, अब नई तरकीबें ढूंढती हैं
.......काश ! राम आ जाएँ
बिना ब्याहे संग रहना, और माई-बाप से तंग रहना
जाने क्या? कैसे रिश्ते?
इसे समझ पाना मुश्किल हो गया है,मर्यादित रिश्ते गुम हो गए हैं

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बिना ब्याहे संग रहना, और माई-बाप से तंग रहना
जाने क्या? कैसे रिश्ते? अब तहजीबें ढूंढती हैं...

BAHOOT HI LAJAWAAB SHER HAI .... MAINE PAHLE BHI IS PAR COMMENT DIYA THA PAR PATA NAHI KAHAAN GAYA ...

vandana gupta ने कहा…

मेरी दीवानगी की हदें, अज़ब सी चीजें ढूंढती हैं
ख़्वाबों के तहखाने में, जिन्दा उम्मीदे ढूंढती हैं

waah.........bahut hi sundar.

Vinay ने कहा…

आपकी ग़ज़ल पढ़कर बहुत अच्छा लगा, आपकी कृति सचमुच बहु अच्छी है।

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गुलाबी कोंपलें

शरद कोकास ने कहा…

बिना ब्याहे संग रहना, और माई-बाप से तंग रहना इस विषय पर पहली बार पढा .. बधाई ।

Rajeysha ने कहा…

सभी आदरणीय मि‍त्रों का हार्दि‍क धन्‍यवाद, आभार। आशा है आपका स्‍नेह, प्‍यार नि‍यमि‍त बना रहेगा।

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