Tuesday 24 November 2009

श्रम के मोती काफी

पेट भरे नींद आ आये, इतनी रोटी काफी
मेहनत करूं और चढ़े देह पर, उतनी बोटी काफी

लानत है इस फैशन पर, रूह नंगी कर देता है
जिसमें मेरे पैर समाएं, इतनी धोती काफी

चाँद, तारे, सूरज की किरने, रोशनी कुछ ज्यादा है
कदम-कदम जो राह दिखाये, दीप की ज्योति काफी

बेईमानी की धन-दौलत से, भ्रम न हो कामयाबी का
माथे पर जो झलकें-चमकें श्रम के मोती काफी

3 comments:

रश्मि प्रभा... said...

waah, bahut badhiyaa

Udan Tashtari said...

लानत है इस फैशन पर, रूह नंगी कर देता है
जिसमें मेरे पैर समाएं, इतनी धोती काफी

-बहुत खूब!!

सदा said...

पेट भरे नींद आ आये, इतनी रोटी काफी
मेहनत करूं और चढ़े देह पर, उतनी बोटी काफी ।

हर पंक्ति दिल को छूती हुई बहुत ही भावमय प्रस्‍तुति

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