मुझको पता था एक दिन, मुझसे जुदा हो जायेगा,
तू पंछी था परदेस का, कभी लौट के भी जायेगा।
हर दिन तेरा आगोश था, शाम ओ शब मेरे मदहोश थे,
मालूम था मौसम कभी वो लौट के न आयेगा।
मुझको पता था हर घड़ी, तेरा साथ था आदत बुरी,
मुझको पता था एक दिन तू ‘अजनबी‘ हो जायेगा।
अब बातें करता है तेरी मुझसे जमाना ताने दे,
मैं रंजीदा1 हूं सोचकर, तू कभी नहीं मिल पायेगा
मरते थे जिस पर टूटकर, वो छूटकर फिर न मिला
दिल है बेबस, ये बेचारा, किससे क्या कह पायेगा?
1 रंजीदा - दुखी
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नकल, तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करने की इच्छा होने पर आत्मा की आवाज सुनें।
5 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना
ढेर सारी शुभकामनायें.
SANJAY BHASKAR
HARYANA
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
लाजवाब......!!
हर शे'र एक से बढ़ कर एक .....बहुत खूब .....!!
मुझे पता था एक दिन तू अजनबी हो जायेगा ..बहुत खूब ..अच्छा लगा आपका यह ब्लॉग .लिखते रहे
wah bahut badiya
bichudna to tay hai magar milte samay eska khyal kabhi nahi aata
agar ye bhav sthayi rehe to anmol honge sambhandh anmol hogi humari duniya ...wah
क्या बात है भाई.बहुत उम्दा..
अब बातें करता है तेरी मुझसे जमाना ताने दे,
मैं रंजीदा1 हूं सोचकर, तू कभी नहीं मिल पायेगा
.यानी डबल अत्याचार ;-)
एक अनूठी अभिव्यक्ति
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