Thursday 29 October 2009

आ अब तो सामने आकर मिल

उम्र के पाखी उड़ चले हैं
कभी किसी डगर तो आकर मिल
मुझे किसी मंजिल की फिक्र हो क्यों?
तेरा साथ जहां, है वही मंजिल

वो तो बचपन की बातें थीं
कि बरसों तुझको देखा किये
रगों में बहता लहू कहता है
कभी मुझसे हाथ मिलाकर मिल

तेरी जुल्फों के काले जादू से
मेरे खवाब हुए रोशन रोशन
हुई बहुत खयालों की बातें
कभी आमने सामने आकर मिल

बादल छाए बिजली चमकी
तेरे साया बोला बातें कई
कर परवाने पे और यकीं
इक बार तो आग जगाकर मिल

बेताब जवानी कहती है
तुझे मेरी वफा पे शक कैसा
आ सारे जमाने के सामने आ
और मुझको गले लगाकर मिल

3 comments:

वाणी गीत said...

ख्यालों की बातें ख्यालों में ही होने दे ...
ख्याल हकीकत से हमेशा ही खुबसूरत होते हैं ...!!

vandana gupta said...

waah ...........kya baat hai........bahut sundar rachna.

Murari Pareek said...

bahut sundar khayaal hain ki khayaalon se nikal kar mil !!!

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