Friday 4 December 2009

क्‍या आपको ऐसा नहीं लगता ?




अक्‍सर एक सपना सा चलता है
कि‍ चारों ओर श्‍मशान सा माहौल है

अजीब सा लगता है
मुर्दों के बीच रहना
चलना फि‍रना
उनसे बातें करना
उनकी निंदा उनकी प्रशंसा करना

फि‍र कभी कभी शक होता है
कि‍ कहीं हम भी मुर्दे ...

और नींद टूट जाती है।


और जागने के बाद भी लगता है
कि‍ ये ही हकीकत है ? या,
वो ही हकीकत थी ?

7 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सही कहा आपने। कभी कभी ऐसा ही लगता है।
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सांसद/विधायक किस बात की तनख्वाह लेते हैं?
अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद कैसे सफल होगा ?

vandana gupta said...

na ye haqeeqat hai na wo haqeeqat thi
wo bhi ik sapna tha aur ye bhi ik sapna hai

दिगम्बर नासवा said...

ये तो माया है ......... क्या सच, क्या झूठ, क्या सपना, क्या हक़ीकत .............
बहुत ही अनुपम रचना ....... तिलिस्म की तरह ..........

सदा said...

इसी ऊहा-पोह की स्थिति में रात को नींद में दिन को जागते एक ख्‍वाब में जीते रहते हैं ।

M VERMA said...

अजीब सा लगता है
मुर्दों के बीच रहना
मुर्दों के बीच रहने की आदत तो डालनी होगी या इन्हें जगाना होगा.

रश्मि प्रभा... said...

अनेकों बार लगा है, अंत सपने में घूमता है

लता 'हया' said...

lagata hai;aksar lagata hai.

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