अक्सर एक सपना सा चलता है
कि चारों ओर श्मशान सा माहौल है
अजीब सा लगता है
मुर्दों के बीच रहना
चलना फिरना
उनसे बातें करना
उनकी निंदा उनकी प्रशंसा करना
फिर कभी कभी शक होता है
कि कहीं हम भी मुर्दे ...
और नींद टूट जाती है।
और जागने के बाद भी लगता है
कि ये ही हकीकत है ? या,
वो ही हकीकत थी ?
कि चारों ओर श्मशान सा माहौल है
अजीब सा लगता है
मुर्दों के बीच रहना
चलना फिरना
उनसे बातें करना
उनकी निंदा उनकी प्रशंसा करना
फिर कभी कभी शक होता है
कि कहीं हम भी मुर्दे ...
और नींद टूट जाती है।
और जागने के बाद भी लगता है
कि ये ही हकीकत है ? या,
वो ही हकीकत थी ?
7 टिप्पणियां:
सही कहा आपने। कभी कभी ऐसा ही लगता है।
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सांसद/विधायक किस बात की तनख्वाह लेते हैं?
अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद कैसे सफल होगा ?
na ye haqeeqat hai na wo haqeeqat thi
wo bhi ik sapna tha aur ye bhi ik sapna hai
ये तो माया है ......... क्या सच, क्या झूठ, क्या सपना, क्या हक़ीकत .............
बहुत ही अनुपम रचना ....... तिलिस्म की तरह ..........
इसी ऊहा-पोह की स्थिति में रात को नींद में दिन को जागते एक ख्वाब में जीते रहते हैं ।
अजीब सा लगता है
मुर्दों के बीच रहना
मुर्दों के बीच रहने की आदत तो डालनी होगी या इन्हें जगाना होगा.
अनेकों बार लगा है, अंत सपने में घूमता है
lagata hai;aksar lagata hai.
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