Tuesday 29 December 2009

गुनगुनाने की कोशिश




सुबह ने सारे सपने खोये, रात ने साये उजालों के
आंसू का खारापन चुभता, यादों के उभरे छालों पे

आंखों पर धुंधलापन उतरा, धूल जमीं है जालों पे
लोग क्यों बेजा अटके से हैं, धूप चांदनी की मिसालों पे


पत्तों से छनकर उतरी जो, आंच नहीं वो सीलन है
यह जम कर जहरीली होगी, वक्त की कई सम्हालों पे

गुनगुनाने की कोशिश में, सांसों से कई कराहें उठीं
अक्सर कई निगाहें उठीं, शुष्क लबों के तालों पे


कई कुपोषण फैले थे, मेरे सीने में तपेदिक से
ऐतराज था उनको, गिनकर, मेरे खुश्क निवालों पे

मौत की खूंटी पर टंगी, चिथड़े-सी जिन्दगी लटकी थी
लहराती थी अंगड़ाई लेकर, मेरे जवाबों-सवालों पे

9 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

मौत की खूंटी पर टंगी, चिथड़े-सी जिन्दगी लटकी थी
लहराती थी अंगड़ाई लेकर, मेरे जवाबों-सवालों पे

बेहतरीन !

vandana gupta said...

bahut hi gahan .

रंजना said...

BAHUT SUNDAR....

SABHI SHER PRABHAVSHALI....

डॉ टी एस दराल said...

सुबह ने सारे सपने खोये, रात ने साये उजालों के
आंसू का खारापन चुभता, यादों के उभरे छालों पे

सुन्दर अभिव्यक्ति।

रश्मि प्रभा... said...

मौत की खूंटी पर टंगी, चिथड़े-सी जिन्दगी लटकी थी
लहराती थी अंगड़ाई लेकर, मेरे जवाबों-सवालों पे
.......वाह, तारीफ़ से ऊपर गूढ़ विचार

रंजू भाटिया said...

बहुत सुन्दर लगी यह रचना शुक्रिया

Udan Tashtari said...

जबरदस्त रचना!!



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यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

हास्यफुहार said...

बहुत अच्छी रचना।
आने वाला साल मंगलमय हो।

Anonymous said...

dost subha ne sapne is liye khoye ki aap ne band ankho se dekh liye tute hain sapne band ankhon se y dekhte ho aur fir dosh mukadar ko dete ho hahahahaha ye y dekha ki raat ne saye ujalon ke chura liye ye y nahi soncha ki raat ne aram kar fir se hooslon ke saath apne dekhe hue man ke sapno ko puri takat ke saath pura karne ki apa ko ek nayi takat dedi hai

ankho pe laga lo gyaan fir kahan zamin jaalon pe dhul hogaijis taraf dekh doge tum har mushkil asan hogi

patton se jo utri vo sunehri dhup hai mat kaho ise silan yahi zindigi ka asli rup hai

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