यूं ही दुख रहेगा
यूं ही संघर्ष रहेगा
यूं ही टूटता रहेगा
हर आदमी
यूं ही बंटेगा आदमी
यूं ही कटेगा आदमी
हिन्दू में
मुसलमान में
सिख में
ईसाई यहूदी में
और
जो आदमी बंटेगा
जो आदमी कटेगा
वो आदमियों को और बांटेगा
वो आदमियों को और काटेगा
हिन्दू में
मुसलमान में
सिख में
ईसाई यहूदी में
दुख, संघर्ष और टूटन से
भ्रम का धुंआ उपजता है
और जन्मा डर
हमेशा बना ही रहता है।
और किसने कहा?
कि मुसलमान
हिन्दू, ईसाई, यहूदी
या सिख हो जाने से
डर खत्म हो जाता है
डर फिर भी नहीं जाता
डर बचाता है एक दूजे से
डर हदों को मान्यता दिलवाता है
डर बनाता है
भंगी चमार (शूद्र)
साहूकार (वैश्य)
फौजी हवलदार (क्षत्रिय)
बाबा के चमत्कार (ब्राह्म्ण)
मुहाजिर, कैथोलिक, प्रोस्टेंट
नेता, अफसर, जनता
आम आदमी
डर बनाता है
डर सपने दिखाता है
सफल निडर
लोकतंत्र में भीड़ की स्वतंत्रता के
समाजवाद में भीड़ की व्यवस्था के
राजतंत्र की एक सर्वोच्च सत्ता के
आदमी
यूं ही डरेगा
झुण्ड बनायेगा
झुण्ड में रहेगा
और सामने वाले से पहले
वार कर बैठेगा
इस तरह एक झुण्ड
अन्य झुण्ड से लड़ेगा
और
ऐसा तो पत्थर युग में होता है ना
तो
आदमी के क्लोन बनाने वाला
रोबोट और ड्रोन बनाने वाला
अन्य ग्रहों तक पहुंचा आदमी
पर, झुण्डों में रचा-बसा आदमी
(अगर अपने ही बमों से बच गया)
तो फिर से तैयार है
पत्थरों से लड़ने के लिए
अन्य ग्रहों पर।
जहां सांस रहने की जगह हो ना हो
सुना है
पत्थर तो हैं ही।
जो समस्याएं ही गिनाता रहे उसे अच्छा आदमी नहीं माना जाता। हल यह है कि “हमको भी गम ने मारा, तुमको भी गम ने मारा” तो आओ ये करें कि इस “गम को मार डालें”। तरीके गौतमबुद्ध ने बताये हैं कि पहले तो समझ लो कि दुख है, इसका हल है। ये कि, ये सब कुछ हमारे मन की भूमि पर ही उगा, पला, बड़ा और जंगल की तरह खड़ा है। ये सीखना बहुत जरूरी है कि हम अपने आपको ऐसे बच्चे की तरह महसूस करें जिसे उसकी मां ने जंगल में एक नदी पार करते हुए जन्मा और बह गई। ये बच्चा बंदरिया के दूध से पला, भालू के शहद से पोसा और जंगली कंदमूल और बेर खाकर बढ़ा है। जिसके दिमाग के कम्प्यूटर में हिन्दू-मुसलमान, ईसाई-यहूदी, एससी-एसटी, नेता-जनता, मर्द या औरत, भले या बुरे होने के साफ्टवेयर नहीं दौड़ रहे हैं। क्योंकि यहीं से इस दुनियां को बचाने की शुरूआत की जा सकती है। ये दुनियां, जो कितने ही वैज्ञानिक विकास के बाद नर्क बन पाये, चुटकियों में स्वर्ग जैसी बन सकती है।