मुझे किसी ने चाँद कहकर पुकारा था।
अब बरसों हो गये है...
बरसों से... हर रोज सवाल रहता है,
मैं आज को कैसे जिऊं?
मुझे नहीं पता,
इतना दिनों तक कौन जिन्दा रहा है,
मुझ में, मेरे सिवा।
मेरी पुरानी होती आंखों में
ख्वाब
वही बरसों पुराने और तरो ताजा हैं
बिना हकीकत में बदले।
लोग कहते हैं मुझसे
”सारे ख्वाबों का हकीकत हो जाना
अपशकुन होता है।“...........
और मैं पूछता हूं उनसे
ख्वाबों का आंखों में रहना,
क्या अच्छा शकुन है?
किसी भी उम्र के लिए?
आज भी
मेरी माँ
मुझे चांद कहती है।
मुझे लगता है
औरत होने का मतलब ही है
मेरी पगली माँ की तरह,
माँ होना।
और मैं पागल हूं
उसके लिए
जिसने मुझे चाँद कहा था
और बरसों तक जो,
अंधेरों में ही है।
मां सच कहती है -
ये भूत, पिशाच, चुड़ैलें, देवदूत और परियां
आदमी की जिन्दगी में ठीक नहीं।
ना सपनों में।
4 टिप्पणियां:
और मैं पूछता हूं उनसे
ख्वाबों का आंखों में रहना,
क्या अच्छा शकुन है?
किसी भी उम्र के लिए?
आज भी
मेरी माँ
मुझे चांद कहती है।
मुझे लगता है
औरत होने का मतलब ही है
मेरी पगली माँ की तरह,
माँ होना।
सुन्दर और बेहतरीन अहसास !
सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
कुंवर जी,
अच्छी रचना।
मां सच कहती है -
ये भूत, पिशाच, चुड़ैलें, देवदूत और परियां
आदमी की जिन्दगी में ठीक नहीं।
ना सपनों में ..
गजब का आकर्षण है इस रचना में ... ख्वाबों की ताबीर होना कभी कभी अपशकुन ही होता है ... जबरदस्त लिखा है ..
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