मंगलवार, 1 जून 2010

ये ख्याल कब तक


इस सफर से,
मेरी मर्जी ना पूछ।
हवाओं से मजबूर तिनकों की,
क्या कोई मर्जी होती है?

जो भी अपना है,
बस उतना ही अपना है,
जितनी की मेरी गलतफहमी।

पता नहीं वक्त क्या होता है,
मंजिल क्या होती है।
ये ख्याल कब तक पलता है,
ये जिस्म कहां ढलता है।

5 टिप्‍पणियां:

दिलीप ने कहा…

waah bahut khoob...

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर.

Dr. C S Changeriya ने कहा…

bahut achha laga pad kar bahut khub

http://kavyawani.blogspot.com/

Dr. C S Changeriya ने कहा…

bahut achha laga pad kar

bahut khub

http://kavyawani.blogspot.com/

Apanatva ने कहा…

sunder abhivykti.

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