इस सफर से,मेरी मर्जी ना पूछ।हवाओं से मजबूर तिनकों की,क्या कोई मर्जी होती है?जो भी अपना है,बस उतना ही अपना है,जितनी की मेरी गलतफहमी।पता नहीं वक्त क्या होता है,मंजिल क्या होती है।ये ख्याल कब तक पलता है, ये जिस्म कहां ढलता है।
waah bahut khoob...
बहुत सुन्दर.
bahut achha laga pad kar bahut khub http://kavyawani.blogspot.com/
sunder abhivykti.
5 टिप्पणियां:
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