खुद ही दिल में आग लगाई
खुद नैनों की नींद उड़ाई
हम तो सबकुछ भूल गये थे
आप उन्हीं ने बात बताई
बदनाम हमें क्या करती दुनिया
खुद कालिख ले माथे लगाई
सब का सब सच्चे जैसा था
जो भी झूठा दिया दिखाई
सब मेरी ही चुनी हुई थीं
पड़ी जो कड़ियॉं मेरी कलाई
जमाने भर की जलन थी जो भी
आन मेरे जी में ही समाई
7 टिप्पणियां:
हा-हा, दिल का दर्द , उम्दा रचना !
बदनाम हमें क्या करती दुनिया
खुद कालिख ले माथे लगाई ..
दुनिया जो ऊपर से देखती है .... बस उसे ही सच मानती है .....
अच्छी रचना है .......
जमाने भर की जलन थी जो भी
आन मेरे जी में ही समाई
सुंदर
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
sundar prastuti.........badhayi
"बदनाम हमें क्या करती दुनिया"
बहुत सुंदर अभिव्यंजना हैं, यह.
अद्बुत। शानदार। दिल को छू गया हर शब्द।
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