Monday 11 January 2010

सांस-सांस मेरे संग ही जीता, मेरा अकेलापन



कल सा नहीं, कि जाय बीता, मेरा अकेलापन
सांस-सांस मेरे संग ही जीता, मेरा अकेलापन

हो सुबह रंगीन सूरज, सूनी सफेद दोपहरें हों
सुनहली सांझ आंमत्रण दे, या चांद तारों के सेहरें हों
पा के सब कुछ रहता रीता, मेरा अकेलापन
सांस-सांस मेरे संग ही जीता, मेरा अकेलापन....

डूबे सूरज से लाली ले, लब आये कर रंगीन शाम
महीन सुरमई साड़ी में, गालों पे लाली ले जहीन शाम
कहीं ना फिर भी पाये सुभीता, मेरा अकेलापन
सांस-सांस मेरे संग ही जीता, मेरा अकेलापन

यादों के खंडहर, बीती राहें और खोई नि‍गाहें
आहें कितनी ठंडी हों, किसे मिलती परायी चाहें
खुश, अतीत में लगा पलीता, मेरा अकेलापन
सांस-सांस मेरे संग ही जीता, मेरा अकेलापन 

हमसे हुई जो दि‍ल्‍लगी,  बात उसने दि‍ल पे ली
बेजा पछताते रहे वो,  रात हमने खूब पी
 नींदों में उधड़े ख्‍वाब सीता, मेरा अकेलापन
सांस-सांस मेरे संग ही जीता, मेरा अकेलापन  

कल सा नहीं, कि जाय बीता, मेरा अकेलापन
सांस-सांस मेरे संग ही जीता, मेरा अकेलापन

4 comments:

Udan Tashtari said...

कल सा नहीं, कि जाय बीता, मेरा अकेलापन
सांस-सांस मेरे संग ही जीता, मेरा अकेलापन

-बहुत सुन्दर!!

vandana gupta said...

bahut sahi kaha hai.

दिगम्बर नासवा said...

कल सा नहीं, कि जाय बीता, मेरा अकेलापन
सांस-सांस मेरे संग ही जीता, मेरा अकेलापन

अच्छा लिखा है ........ अकेलापन अकेले ही रहता है ......... भीड़ में भी अकेला .........

Alpana Verma said...

'खुश, अतीत में लगा पलीता, मेरा अकेलापन'
----------
'नींदों में उधड़े ख्‍वाब सीता, मेरा अकेलापन'

bahut khoob!
geet bahut hi bhaavpoorn aur khubsurat hai.

Post a Comment