Sunday 31 January 2010

बुरा लोग मानेंगे


संभल के चल, जो हुई खता, बुरा लोग मानेंगे
बुरे को भी, जो बुरा कहा, बुरा लोग मानेंगे

‘‘जर्रा-जर्रा यहां खुदाई’’, दुनियां कहती है
तूने खुद को खुदा कहा, बुरा लोग मानेंगे

‘‘कायदे से बात कर’’ सभी लोग कहते थे
तो कहा नहीं मैंने कायदा, बुरा लोग मानेंगे

मिलें कभी तो दुनियां भर की, लोग कहते थे
मैंने न कहा ‘क्या है माजरा?’, बुरा लोग मानेंगे

इश्क, मजहब, ईमान पर तकरीरें होती हैं
सुन लेते हैं हमें है पता, बुरा लोग मानेंगे

जिसके सजदे उम्र भर मैंने किये ‘अजनबी’
क्यों कहूं उसको खुदा, बुरा लोग मानेंगे

4 comments:

दिगम्बर नासवा said...

इश्क, मजहब, ईमान पर तकरीरें होती हैं
सुन लेते हैं हमें है पता, बुरा लोग मानेंगे ...

सच कहा लोग उन सब बातों का बुरा मानेगे जो उन्हे पसंद नही ........ पास किस किस की पसंद का ख्याल रखें ....... बहुत सुंदर ग़ज़ल है ..........

vandana gupta said...

sach kab kisi ko pasand aaya hai?
jab bhi sach kahoge, bura log manege.

डॉ टी एस दराल said...

इश्क, मजहब, ईमान पर तकरीरें होती हैं
सुन लेते हैं हमें है पता, बुरा लोग मानेंगे

सच कहा।

Apanatva said...

संभल के चल, जो हुई खता, बुरा लोग मानेंगे
बुरे को भी, जो बुरा कहा, बुरा लोग मानेंगे
har sher accha hai .........
gazal bahut acchee lagee.......

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