सोमवार, 18 जनवरी 2010
प्रकृति से सम्बन्ध
अकेले हो रहने में ही अनन्त शक्ित और अनन्त मुक्त शक्ित में ही आनन्द निहित है।
प्रकृति और हम अलग नहीं, प्रकृति को नष्ट करना स्वयं को नष्ट करना है।
http://jkrishnamurthyhindi.blogspot.com/
3 टिप्पणियां:
मनोज कुमार
ने कहा…
रचना अच्छी लगी।
18 जनवरी 2010 को 7:06 am बजे
डॉ महेश सिन्हा
ने कहा…
प्रकृति और पुरुष यही तो सब है
18 जनवरी 2010 को 7:10 am बजे
दिगम्बर नासवा
ने कहा…
सत्य कहा है ..... प्रकृति है तो जीवन है .........
19 जनवरी 2010 को 12:11 am बजे
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3 टिप्पणियां:
रचना अच्छी लगी।
प्रकृति और पुरुष यही तो सब है
सत्य कहा है ..... प्रकृति है तो जीवन है .........
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