खुदाया वे! हाये!!! इश्क है कैसा ये अजीब रे
दिल के करीब लाया, दिल का नसीब रे - 2
खुदाया वे! हाये!!! इश्क है कैसा ये अजीब रे
आखों से ख्वाब रूठे, अपनों के साथ छूटे
तपती हुई राहों में, पैरों के छाले फूटे......
प्यासे तड़प रहें है, साहिल करीब रे - 2
खुदाया वे! हाये!!! इश्क है कैसा ये अजीब रे
आंसू नमक से लागे, रिश्ते हैं कच्चे धागे
रेत पे अपने साये, खुद से क्यों दूर भागे
खींच के हमको लाया, कहां पे रकीब रे - 2
खुदाया वे! हाये!!! इश्क है कैसा ये अजीब रे
जब भी है गाना चाहा, दर्द ही लब पे आया
उम्रें हैं गुजरी लाखों, फिर भी मिला ना साया
जिसको भी माना अपना, लाया सलीब रे - 2
खुदाया वे! हाये!!! इश्क है कैसा ये अजीब रे
यहाँ पर गीत का अंतिम अंतरा ‘‘राजेशा’’ ने गढ़ने की कोशिश की है।
फिल्म - लक, गायक-सलीम मर्चेंट, गीत- शब्बीर अहमद
क्या आपने हिन्दी युग्म पर 36वें यूनिकवि के रूप में
हमारी कविता "नाराजगी का वृक्ष" पढ़ी ??
नहीं तो ये लिन्क देखें- http://kavita.hindyugm.com/
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1 टिप्पणी:
अच्छा अंतरा जोड़ा है आपने ......... बधाई .........
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