गुरुवार, 20 अगस्त 2009

हाए। कहॉं गए तुम

तेरी मोहब्बत का जो सहारा मिलता
दिल की कश्ती को किनारा मिलता

चाँद तो सारी रात सबका रहा
अपनी कि‍स्‍मत को सि‍तारा मि‍लता

सारी शब तारे रहे गरदि‍श में
कुछ तो नजरों का इशारा मि‍लता

चेहरा भी धुंधला हुआ यादों में
कभी तेरी दीद का शरारा मि‍लता

10 टिप्‍पणियां:

Arshia Ali ने कहा…

Sundar rumaani kavita.
( Treasurer-S. T. )

Arun ने कहा…
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रंजू भाटिया ने कहा…

चाँद तो सारी रात सबका रहा
अपनी कि‍स्‍मत को सि‍तारा मि‍लता

बहुत सुन्दर लगे इसके भाव ..शुक्रिया

Vinay ने कहा…

अच्छी कविता!

मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव

naresh singh ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता है ।

M VERMA ने कहा…

सारी शब तारे रहे गरदि‍श में
कुछ तो नजरों का इशारा मि‍लता
behatareen khayal. sunder sher.

रचना गौड़ ’भारती’ ने कहा…

आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भारती

अनूप शुक्ल ने कहा…

सुन्दर!

नीरज गोस्वामी ने कहा…

सारी शब तारे रहे गरदि‍श में
कुछ तो नजरों का इशारा मि‍लता

Behtareen ghazal...waah...likhte rahiye...

Neeraj

रज़िया "राज़" ने कहा…

चेहरा भी धुंधला हुआ यादों में
कभी तेरी दीद का शरारा मि‍लता



बेहद खुबसुरत गज़ल।

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