शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

राहुकालम पर चढ़ा मानुष

आप राहु ग्रह के बारे में क्या जानते हैं? खैर आपकी गलतफहमियाँ दूर करते हैं। राहु की पैदाइश की कहानी कहती है एक समय अमृत मंथन के दौरान त्रिदेवों ने प्लान बनाया कि असुरों से मेहनत तो करवा ली जाये पर इनको अमृत न चखने दिया जाये। लेकिन एक असुर ने कुछ ज्यादा ही समझदारी दिखाई, देवता का रूप बन देवताओं की लाईन में ही खड़ा हो गया। जब तक उनके पीछे खड़े देवताओं को पता चला कि ये तो असुर है और अमृत पी गया है, काफी देर हो चुकी थी। विष्णु जी ने चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। असुर एक ही था पर सिर यानि राहु और धड़ यानि केतु ने अलग-अलग ग्रह के नाम से जन्म ले लिया। धड़ और सिर, राहु और केतु कभी एक हो जाएँ ऐसा होता नहीं, तो अपने इस अधूरेपन का दुःख वो सिर और धड़ लोगों को दुखी कर जताते हैं।

दक्षिण में राहुकालम नाम से सप्ताह के प्रत्येक दिन में कुछ ऐसे घंटे होते हैं जिनमें शुभकार्य करना वर्जित माना जाता है, लेकिन सबको यह खबर कहाँ। राहु बेधड़क उन घंटों में सक्रिय रहता है।

सारे वो कार्य या गतिविधियाँ/घटनाएं जो हमारे आस पास के लोगों के दिमागों में खुराफात पैदा कर सम्पन्न की जा रही हैं वो पूरी तरह राहु प्रेरित हैं।

खयालों में रहना, झाड़ पर चढ़ जाना और ताजिंदगी उसी पर बने रहना राहुच्छादित मानुष का प्रथम लक्षण होता है। सिगरेट, शराब और शबाब (नीली फिल्मों) ने उनकी आंखों की रोशनी छीन ली। अजीब सी बीमारी हो गई, आंखों मे ंसूईयाँ सी चुभतीं थी। मोहल्ले के झोलाछाप डाॅक्टरों से इलाज कराते 5-7 बरस होने पर दो एक बार शासकीय अनुदान पर दिल्ली बैंगलोर चले गये। वहां के डाॅक्टरों ने क्या कहा पता नहीं। पर वहां से लौटे तो उन्होंने बताया कि जिस तरह की आंखों की बीमारी उनको है पूरे मध्यप्रदेश में किसी को नहीं। इस प्रकार उन्होंने इलाज करवाना बंद कर दिया, अब वो जो भी मिलता उस दुर्लभ बीमारी का बखान करते जो उनको है और भारत में किसी को नहीं। तो राहु मति की क्षति में अग्रगामी प्रभाव रखता है।

ऐसे ही ब्लाॅग लेखक, एलोपैथी प्रैक्टिशनर, कवि-कलाकार, जुगाड़ू लोग, कुछ नया-नया करने वाले,पागल-दीवाने, परायी बीवियों में इच्छुक लोग, परायी प्रेमिकाओं को आधार बनाकर शेर ओ शायरी करने वाले इन सब में समान बात ये है कि इन सभी का बस सिर चलता है। धड़ के लिए यानि आधार के लिए तड़पता है पर इन्हें जीवन भर किसी चीज का आधार नहीं मिलता। इनकी ये हालत राहु द्वारा इन्हें बुरी और पूरी तरह गिरफ्त में लिये जाने के कारण होती है। लोग बेवजह प्यार को अंधा कहते हैं, अंधेपन का कारक राहु होता है। वह सिर पर कुंडली मारकर बैठ जाता है और धड़ से दूर रखते हुए बाकी सब करवाता है। घर-परिवार-समाज वाले लोग इसे लड़के या लड़की का बरबाद हो जाना कहते हैं। प्यार की नजर तो बहुत तेज होती है इसलिए सांवले-काले आशिक गौरवर्ण गोरियों को आसानी से पटा लेते हैं।
गिरधारीलाल शायर थे। लिखना, गाना और बजाना शौक था। एक के बाद एक नौकरियां छूटती गईं। 10 सालों में मासिक आमदनी इतनी नहीं हो पाई की कोई घरवाली मिल जाए। एक राहुप्रभावित विदुषी मिलने पर उसकी परवरिश गिरधारीलाल के मित्रों को करनी पड़ी। गिरधारीलाल का सुबह 9 बजे काम पर जाना रात को 9 बजे आना। सुबह बच्चे स्कूल चले जाते थे और जब रात को लौटते बच्चे सो जाते थे। बच्चे अन्यों को पापा और गिरधारीलाल को अंकल कहते थे। भगवान राहु से बचाये।

चूंकि राहु का सिर ही सिर है धड़ है ही नहीं यानि हाथ पैर चलाने की कल्पना भर ही संभव है तो राहु लोगों के सिरों में घुसकर यह भाव अच्छी तरह पुष्ट कर देता है कि वो कुछ नहीं कर सकते। लेकिन करने के विचार तो आते हैं, इसलिए लोग ये मानते हुए कि करना-धरना कुछ नहीं पर अभिव्यक्त की आजादी तो भारतीय संविधान सम्मत है, ब्लाॅग लिखने लगते हैं, किताबें गढ़ने लगते हैं। राहु खुश हो जाता है।
कई लोगों के ब्लाॅग पर उनके ब्लाॅग लिखने की वजह लिखी है। हालांकि किसी ने पूछा नहीं होता कि ‘‘आप क्यों लिख रहे हैं।’’ जिनका कोई उद्देश्य हो वो पूछेगा ना। राहु सारे लोगों को उद्देश्यविहीन कर देता है। लोगबाग अपने कर्मों पर कमेन्ट्स करने वालों की तलाश में सभी तरह की सरकस करने लगते हैं। उनके ब्लाॅग पर लिखा होता है कि वो ‘‘दिल की भड़ास निकालने के लिए’’ ब्लाॅग लिखते हैं। भई, भड़ास निकालनी है तो मंत्रियों पर जूते फेंक कर निकालो। ये कोई जगह है भड़ास निकालने की। ब्लाॅगस्पाट ने आपको स्पाॅट क्या दे दिया आप तो फैलते ही जा रहे हैं। राहु के प्रभाव से ऐसी ही मति हो जाती है, जिसका खाएं उसकी ही में छेद करें। ब्लाॅग, ब्लाॅगस्पाट.गूगल वालों का विज्ञापन पराये शादी डाॅट काॅम और अन्य लोगों के।

राहु द्वारा सम्पन्न कर्मों में किसी भी गृहिणी द्वारा आयुपर्यन्त किये जा रहे समस्त गृहकार्य, राजनीति, चुनाव, लोकतंत्र-वोट देना, रोबोट की तरह काम करने वाले लोग जो जब तक जबरन वीआरएस देकर घर नहीं बैठा दिये जाते फेक्ट्री आॅफिस जाते रहते हैं इत्यादि शामिल हैं। इन्हें जिंदगी भर होश नहीं आता कि उस काम के अलावा कुछ किया जा सकता है जो वो पिछले दशकों से कर रहे हैं। राहुग्रसित व्यक्ति कईयों की हालत तो ये हो जाती है कि मरणशैय्या पर भी वही पिछले 5 दशकों की रूटीन दिनचर्या एक दिन और जीने की भीख माँगता है।
राहु प्रभावित व्यक्तियों की हाथ की उंगुलियाँ और टांगे बेहतर काम करने लगते हैं। हर कहीं उंगली करना और फटे में टांग अड़ाना सम्पूर्ण जीवन का ध्येय होता है। ऐसे लोग अच्छे भले काम में नुक्स निकाल सकते हैं। संदेह और शक इनकी आंखों में कीच की तरह जमा होता है। चारो ऋतुओं में इनकी आंखें दुखती रहती हैं। दुखती आंखें चहुं ओर अपना प्रदूषण फैलाती हैं। आलोचक टाईप के लोग इनके प्रतिनिधि अभिव्यक्ता होते हैं।

राहुग्रस्ति युवतियाँ 22-27 साल तक लड़की एमबीए, बीकाॅम सीए की डिग्रियाँ लेती है और आगे जाकर साल दो साल में ही सारी पढ़ाई छू मन्तर। इलेक्ट्रानिक्स चिमनी, माइक्रोवेव ओवन्स, मल्टीपरपज मिक्सर ग्राइन्डर, और सदियों पुराने चैका चूल्हे के आधुनिक संस्करण की आढ़ में सारी उपाधियाँ स्वाहा हो जाती हैं। कपड़े धोने, घर के झाड़ू पोंछे, बर्तनों की सफाई बच्चे पालने में ही प्रौढ़ावस्था पार हो जाती है।

राहुग्रसित वृद्ध अपने अतीत की दुहाई देते रहते हैं कि किस समय उन्होंने क्या तोप मारी थी। हालांकि ये सब खयाली बातें होती हैं राहुग्रस्तता के कारण जीवन भर ही कल्पना के अलावा कुछ और कर नहीं पाते वही कल्पनाएं उन्हें अपने अतीत का घटित सच लगने लगती हैं। कोई मनोवैज्ञानिक काम नही करता। क्योंकि राहुग्रसित व्यक्ति सिर ही सिर में जिंदा रहता है, लोगबाग ऐसे लागों को बुद्धिजीवी कहने लगते हैं।

सुअर बुखार की तरह राहु ग्रसित व्यक्ति के लक्षण भी सामान्य से दीखते हैं पर उभरने पर यकायक नरकारोहण के अलावा कुछ नहीं घटता। टेमूफ्लू की डोज बेअसर हो जाती है, इतने छोटे नाम की दवाई भला कैसे असर करेगी। सारे अखबार, टीवी चैनल्स के भय से लोग फ्लूग्रस्त हो जाते हैं। लोगों के बड़ी मात्रा में नजला होने से सरकार भयग्रस्त हो जाती है, कहीं ये नजला हम पर ही न आ गिरे। बड़े बड़े विज्ञापन छपवाने पड़ते हैं कि ऐसा नहीं वैसा है। लेकिन होता तो वही है, जो है। हकीकत इस बीमारी को एन1एच1 का नाम देने वालों को भी पता नहीं होती।

यही कहानी अमरीकियों के बारे में है ईरान से डायरेक्ट पंगा न लेने, मुस्लिम जगत के समक्ष और आक्रामक न होने के उद्देश्य और ईराक के तेल कुओं पर नजर लगाये अमरीका ने सद्दाम हुसैन को पाला, और अफगानिस्तान पर पकड़ के लिए तालिबान को पर सब सीखने और हथियार मिलने पर यह एक असुर का काम करने लगे। अब सद्दाम के जाने से लगा कि सिर और धड़ अलग हो गये पर आतंक जारी है। राहु आतंकवाद ही नहीं अन्यान्य कई रूपों में हमारे रोजमर्रा के जीवन में यत्र तत्र दिखता है।
तो भई राहुकालम का ध्यान रखिये। इस कालम पर चढ़ा व्यक्ति ईसा तो नहीं कहलाता पर हालत उनसे भी बुरी होती है।

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