बुधवार, 26 अगस्त 2009

हाल-ए-दिल कैसे कहें ?




हाल ए दिल कैसे कहें- इन उलझनों में बिछड़ गए
तेरा मिलना ही परेशानी था, फिर क्या नहीं मुश्किल रहा।


शाम से चेहरा तेरा फिर जहन की दीवारों पर,
जाम की गहराई में तेरे लबों का तिल रहा।

मैं सोचकर हैरान हूं, ये दिल न मेरा दिल रहा,
ताजिन्दगी इक अज़नबी मेरे खवाबों की महफिल रहा।


उम्रों की उम्मीदों का, हाए बस यही हासिल रहा।
वो संग दिल था जब मिले, हम जब चले, संगदिल रहा।

 

3 टिप्‍पणियां:

समय चक्र ने कहा…

बहुत सुन्दर वाह

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया!!

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन रचना!! आनन्द आया!

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