सोमवार, 7 अप्रैल 2014

तुमसे जो बात हो गर्इ् साहिब

तुमसे जो बात हो गर्इ् साहिब 
हसीन हयात हो गई साहिब

शब के खामोश लब जब हिले हैं
दिन नये, रातें हैं नई साहिब

चंद लफ्जों का लेन देन महज
बस में जज़्बात ही नहीं साहिब

खयालों ने नई परवाज ली है
छोड़ दी तंग दिल जमीं साहिब

यूं हकीकत के हम मुरीद बहुत
ख्वाब में, बस तुम्हीं—तुम्हीं साहिब


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