शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

प्रेम... जल की तरह है


प्रेम, झरने की तरह कभी ऊंचाईयों से नीचे गिरता है तो कभी समन्दर की जर्बदस्त ऊंची लहरों की तरह किनारों से भिड़-भिड़ जाता है। वह छिछली पारदर्शी गहराई में गुनगुनाती कलकल धारा की तरह बहता है तो कभी शांत और गंभीर होकर किसी झील या तरणताल में भी ठहरा रहता है। वह धरती के नीचे चुपचाप, अनाम सा छुपा हुआ बहता रह सकता है। यहाँ तक कि आप सवेरे-सवेरे ताजा हरी दूब के सिरों पर उसे ओस की बूंदों सा चमकता हुआ भी पाते है। 

जब प्यार जुनूनी और जोशीला होता है वह समन्दर की लहरों सा होता है। संतान के लिए प्रेम अतिरेक में माँ का उमड़ता हुआ प्यार उस नदी का प्यार होता है जो पर्वतों से मैदानों की प्यास बुझाने को उतर आती है। दूसरी ओर पिता या चुप्पे साथी या उस नज़दीकी व्यक्ति का प्रेम होता है जो कभी नज़र नहीं आता, पर शांत सरस्वती की तरह धरती के नीचे बहता रहता है, इतना गुप्त-छुपा-दबा-ढंका कि आपको लगता ही नहीं कि प्रेम का ऐसा स्वरूप भी हो सकता है। यारों-दोस्तों की दिल्लगी, हल्का-फुल्का हंसी-मजाक और साथ, हमें वह प्रेम देता है जो सुबह-सुबह घास की बूंदों पर ओस की तरह दमकता है, हमें तरो-ताजा रखता है। इसी तरह हमारे बड़े-बुजुर्गों का प्यार, झील या तालाब के उस शांत ठहरे जल सा होता है, जो हमारी ज्ञान और अनुभव की प्यास को बुझाता है। सभी मामलों में पानी तो पानी ही होता है ना, इसी तरह प्यार भी एक समान ही होता है। 
जिस पात्र में रखा हो, पानी उस रंग का दिखाई देता है। अगर वह लाल रंग के कांच के बाउल में रखा हो तो वह मदमस्त रोमांटिक नजर आता है। नीले रंग के पात्र में वह माता-पिता या बड़े बुजुर्ग के प्रेम सा। हरे रंग के पात्र में किसी यार दोस्त की यारी या मित्रता सा । 

लेकिन पानी ना तो लाल होता है, ना नीला, ना रहा...वह तो अपने ही पारदर्शी रंग का या रंगहीन होता है। चाहे वह महिला-पुरूष का इश्क हो या शिक्षक और छात्र के बीच का प्रेम, या माता-पिता और उनके बच्चों के बीच प्रेम... ये सब प्रेम के प्रकार नहीं होते। यह सब एक ही गुणधर्म वाला प्रेम होता है, बस ग्रहण करने वाले (या रिश्ते) अलग होते हैं। पानी एक ही होता है पात्र भिन्न-भिन्न होते हैं। ये आपकी सुविधा है कि आप इसे पानी की तरह देखते हैं या ग्रहण करने वाले पात्र के अनुसार ।
मूल-वाणी मुरारका. हिन्दी अनुवाद-राजेशा


Love is like water.

Water might be cascading down like a waterfall, or it might be in the form of robust waves of the ocean. It might be flowing as a gently gurgling stream. It may be calm and placid in a lake or swimming pool. Water may be flowing under the ground. You may get just a hint of it, as dew drops on the morning grass.

When Love is heady, passionate, it is like the waves of the ocean. The over-flowing Love of a mother, where she herself is overwhelmed by the intensity and force of Love that she feels – it is like water is falling down rapidly from the mountains. When it is the quiet implicit Love of a father or a reticent mate or even of someone close who may seem unloving, it is like water flowing underground. The Love of a friend, the lighthearted laughter and companionship it brings, feels like dew drops on the morning grass. The calm, still, placid water in a lake or swimming pool feels like the calm Love of a saint for all.

The water in all cases is the same. The Love in all cases is the same.

Water takes on the color of its receptacle. In a red bowl it looks like red water. It feels romantic. In a blue bowl, water looks blue. It feels like the Love of a father, mother, mentor or guide. In a green bowl, water looks green. It feels like the Loving companionship of a friend.

But the water is neither red, nor blue, nor green. It is the same water.

The Love in a romantic relationship, amongst friends, between a teacher and a student, between a parent and child – is not different. It is simply Love. There are no different kinds of Love.

The receptacles (the relationships) are different.

What gives comfort when you look at it is the water, not the receptacle.

Original : Vani Murarka
Hindi Translation : rajeysha

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