सोमवार, 31 मार्च 2014

दिल की धोखा खाने की आदत


जिधर रोका वहीं जाने की आदत
दिल की धोखा खाने की आदत

उम्र ने कहा दानां बनो ना
हमें नादान कहाने की आदत

बिना वजह रूठ जाते हैं वो
जाने है मेरी मनाने की आदत

अजनबी ले लेतें है मुझसे वादा,
शक्ल पर चिपकी, निभाने की आदत

सबको पता,  कब.. होंगे कहां
जिंदा घर, मुर्दा श्मशान जाने की आदत

तुम तो कभी... आवाज दोगे नहीं
हमें ही सुनने-सुनाने की आदत

तेरी हकीकतों से रूबरू तो हुए हैं
... जाएगी जाते जाते ख्वाब सजाने की आदत

सारी दुनियां खाक होनी ही है
...  हमें जलने, उन्हें जलाने की आदत

पता नहीं रूह का, फिर होता होगा क्या?
जिस्म की कभी भी, मर जाने की आदत

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