गुरुवार, 10 मई 2012

एक होना, यानि पूर्ण होना।



जैसे ही दो लोग मिलते हैं,
एका होने से, खुशी होती है।
जब वो कुछ कहने लगते हैं,
वो अपनी-अपनी ”बात“ होती है,
किसी ”बात“ का मतलब ही होता है
दो चीजें।
इस तरह दो चीजों में बंटते ही
खुशी काफूर हो जाती है,
इसलिए
चुप रहो।

जब कुछ महसूस किया जाता है
खो जाता है सबकुछ
वक्त भी।
जब फिर से मांगा जाता है वही महसूसना,
तो वक्त लौट आता है
अतीत, वर्तमान और भविष्य के
तीन सिरों में कटा हुआ।
कटी-फटी-टुकड़ों में बंटी चीजें
अशुभ होती हैं।
इसलिए
महसूस करो और
चुप रहो।

याद करो
उन दिनों हम कितने खुश थे
जब ना कोई बोली थी
ना कोई भाषा
मौजूदगी को महसूसने की
थी
अपनी ही अबूझ परिभाषा।
जब से हमने
अहसासों को बांधने की कोशिश की है-
बोलियों-भाषाओं में,
शब्दों-स्मृतियों में।
हम बेइन्तहा बंट गये हैं।
इतने कि
एक छत और
एक बिस्तर को
एक साथ महसूसने के बाद भी
हम एक नहीं हो पाते।
इसलिए हो सके तो
कुछ ना कहो
चुप रहो।

प्रार्थना
कैसे की जा सकती है?
क्योंकि जैसे ही प्रार्थना की जाती है,
एक खाई बन जाती है
प्रार्थना करने वाले, और
जिससे प्रार्थना की जारी रही
उसमें।
इसलिए चुप रहो।

सहज खामोशी में हम
एक हो सकते हैं।
खामोश होने के लिए
जरूरी है कि हम
वही रहें, जो हैं।
और कुछ होना ना चाहें
उसके सिवा
जो है।
जो हैं,
बस वही भर रह जाने से
हम एक हो जाते हैं।
खामोशी रह जाती है।
एक होना,  यानि पूर्ण होना
मृत्यु रहित होना।

7 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

सही कहा आपने, आपसे सहमत .

विभूति" ने कहा…

सच में ये एक पूर्ण अभिवयक्ति है.....

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

ऐसी ही हैं ये जिंदगी

रश्मि प्रभा... ने कहा…

http://kuchmerinazarse.blogspot.in/2012/05/blog-post_11.html

KAVITA ने कहा…

bahut hi sundar chintan karati sarthak prastuti..

Ravikant yadav ने कहा…

कृपया मेरी रचना भी देखे

Dr.R.Ramkumar ने कहा…

वो अपनी-अपनी ”बात“ होती है,
किसी ”बात“ का मतलब ही होता है
दो चीजें।
इस तरह दो चीजों में बंटते ही
खुशी काफूर हो जाती है,
इसलिए
चुप रहो।


nice

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