Saturday 26 May 2012

ये भी बुरा है



अगर मैं
इससे बेखबर रहूं
कि मैं खुद,
और तुम
कब तक साथ रहेंगे?

और
दिन ऐसे बिताऊं
जैसे मैं
या तुम
हमेशा ही साथ रहेंगे,
और तुम्हें
कोई वजह ना होने से भुलाऊं
कभी जरूरी ही
कोई बात करूं
और सारा दिन
काम धंधें में खपाऊं
तो बुरा है।

और अगर मैं
हमेशा
ये ध्यान रखूं
कि क्या पता
कब मैं,
या,
कब तुम,
साथ नहीं रहेंगे
और तुमसे
सारा सारा दिन
चिपका रहूं
बीतते हुए
बरसों-बरस
छोड़ूं ही ना तुम्हें
जीने के लिए
तो ये भी बुरा है

कुछ भी
भला नहीं लगता -
मौत के
लिहाज से।

7 comments:

विभूति" said...

बहुत ही खूबसूरती से जिन्दगी को शब्दों में ढाला है आपने.....

दिगम्बर नासवा said...

Jeene ke andaz ke vibhinn pahloo ko bakhoobi utaara hai ...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सुंदर कवि‍ता है

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह................
अद्भुत अभिव्यक्ति.....

अनु

सदा said...

बेहतरीन भाव संयोजित किये हैं आपने ।

amrendra "amar" said...

बहुत ही भावना पूर्ण प्रस्तुति

Nirbhay Jain said...

बेहतरीन .......

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