अगर मैं
इससे बेखबर रहूं
कि मैं खुद,
और तुम
कब तक साथ रहेंगे?
और
दिन ऐसे बिताऊं
जैसे मैं
या तुम
हमेशा ही साथ रहेंगे,
और तुम्हें
कोई वजह ना होने से भुलाऊं
कभी जरूरी ही
कोई बात करूं
और सारा दिन
काम धंधें में खपाऊं
तो बुरा है।
और अगर मैं
हमेशा
ये ध्यान रखूं
कि क्या पता
कब मैं,
या,
कब तुम,
साथ नहीं रहेंगे
और तुमसे
सारा सारा दिन
चिपका रहूं
बीतते हुए
बरसों-बरस
छोड़ूं ही ना तुम्हें
जीने के लिए
तो ये भी बुरा है
कुछ भी
भला नहीं लगता -
मौत के
लिहाज से।
7 टिप्पणियां:
बहुत ही खूबसूरती से जिन्दगी को शब्दों में ढाला है आपने.....
Jeene ke andaz ke vibhinn pahloo ko bakhoobi utaara hai ...
सुंदर कविता है
वाह................
अद्भुत अभिव्यक्ति.....
अनु
बेहतरीन भाव संयोजित किये हैं आपने ।
बहुत ही भावना पूर्ण प्रस्तुति
बेहतरीन .......
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