शनिवार, 26 मई 2012

ढेर सारी सुविधा, ढेर सारा आलस।

ढेर सारी सुविधा
ढेर सारा आलस
मौसमी गर्मी उमस से नहीं
दिल घबराता है
इस बात से कि
अगर ये सब ना हो तो ?
यही...
ढेर सारी सुविधा
ढेर सारा आलस।
ढेर सारी सुविधा, ढेर सारा आलस,
आपको वो सब नहीं करने देता
जो आप पिछले कई सालों से नहीं कर पाये हैं
और हो सकता है कि
आप किसी भी मौत तक वो ना कर सकें,
वजह आप मानेंगे ही
ढेर सारी सुविधा
ढेर सारा आलस।
हम इस सब के इतने आदि हैं
कि न्यूनतम पर राजी हैं
यकीनन कुछ खास नहीं
आम आदमी हैं
गाजर मूली भाजी हैं
वजह वही
ढेर सारी सुविधा
ढेर सारा आलस।
ढेर सारा खाना, ढेर सारा टीवी
ढेर सारे बच्चे, ढेर सारी बीवी
ढेर सारे खर्चे, ढेर सारी चिंता
ढेर सारे काम, इंतिहा इंतिहा
मौत तक नहीं करोगे बस
रहोगे जस के तस
बिना किसी बीमारी के,
बीमार, लाचार, बेजार, बे-खबरदार
अनचाहे ही,
तुम जानते हो वजह
ढेर सारी सुविधा
ढेर सारा आलस





ये भी बुरा है



अगर मैं
इससे बेखबर रहूं
कि मैं खुद,
और तुम
कब तक साथ रहेंगे?

और
दिन ऐसे बिताऊं
जैसे मैं
या तुम
हमेशा ही साथ रहेंगे,
और तुम्हें
कोई वजह ना होने से भुलाऊं
कभी जरूरी ही
कोई बात करूं
और सारा दिन
काम धंधें में खपाऊं
तो बुरा है।

और अगर मैं
हमेशा
ये ध्यान रखूं
कि क्या पता
कब मैं,
या,
कब तुम,
साथ नहीं रहेंगे
और तुमसे
सारा सारा दिन
चिपका रहूं
बीतते हुए
बरसों-बरस
छोड़ूं ही ना तुम्हें
जीने के लिए
तो ये भी बुरा है

कुछ भी
भला नहीं लगता -
मौत के
लिहाज से।

गुरुवार, 10 मई 2012

एक होना, यानि पूर्ण होना।



जैसे ही दो लोग मिलते हैं,
एका होने से, खुशी होती है।
जब वो कुछ कहने लगते हैं,
वो अपनी-अपनी ”बात“ होती है,
किसी ”बात“ का मतलब ही होता है
दो चीजें।
इस तरह दो चीजों में बंटते ही
खुशी काफूर हो जाती है,
इसलिए
चुप रहो।

जब कुछ महसूस किया जाता है
खो जाता है सबकुछ
वक्त भी।
जब फिर से मांगा जाता है वही महसूसना,
तो वक्त लौट आता है
अतीत, वर्तमान और भविष्य के
तीन सिरों में कटा हुआ।
कटी-फटी-टुकड़ों में बंटी चीजें
अशुभ होती हैं।
इसलिए
महसूस करो और
चुप रहो।

याद करो
उन दिनों हम कितने खुश थे
जब ना कोई बोली थी
ना कोई भाषा
मौजूदगी को महसूसने की
थी
अपनी ही अबूझ परिभाषा।
जब से हमने
अहसासों को बांधने की कोशिश की है-
बोलियों-भाषाओं में,
शब्दों-स्मृतियों में।
हम बेइन्तहा बंट गये हैं।
इतने कि
एक छत और
एक बिस्तर को
एक साथ महसूसने के बाद भी
हम एक नहीं हो पाते।
इसलिए हो सके तो
कुछ ना कहो
चुप रहो।

प्रार्थना
कैसे की जा सकती है?
क्योंकि जैसे ही प्रार्थना की जाती है,
एक खाई बन जाती है
प्रार्थना करने वाले, और
जिससे प्रार्थना की जारी रही
उसमें।
इसलिए चुप रहो।

सहज खामोशी में हम
एक हो सकते हैं।
खामोश होने के लिए
जरूरी है कि हम
वही रहें, जो हैं।
और कुछ होना ना चाहें
उसके सिवा
जो है।
जो हैं,
बस वही भर रह जाने से
हम एक हो जाते हैं।
खामोशी रह जाती है।
एक होना,  यानि पूर्ण होना
मृत्यु रहित होना।

शनिवार, 17 मार्च 2012

एक रोबोट और आप में क्या अन्तर है?



वो रोज सुबह सूरज की पहली किरन के साथ उठता है। ब्रश करता है, नहाता है। अगरबत्ती, पूजापाठ-जप करता है। नाश्ता करता है। बच्चों के सिर पर हाथ फेरता है। बीवी को चूमता है। ठिकाने से मोटरसाइकिल या कार निकालता है और दफ्तर चला जाता है। दफ्तर या किसी साइट पर रूटीन बंधा-बंधाया काम करता है। शाम को एक नियत समय लौटने का इंतजार करता है और घर कही जाने वाली जगह में वापस लौट आता है। जी हां ये सब बातें रोबोट किसी भी आदमी से बेहतर कर सकता है। 

यदि आपको लगे कि आपकी जिन्दगी की तुलना किसी रोबोट से की जा सकती है, तो क्या यह जिन्दगी है? फिर यह भी प्रश्न उठना चाहिए कि, वो क्या चीजें हैं जो इंसान को रोबोट या परिष्कृत मशीनों से अलग करती हैं? रोज हो रहे नये आविष्कारों को पढ़ते-सुनते-देखते हुए, यह प्रश्न करना बहुत ही आवश्यक है। 

याद रखिये लोहे या अन्य धातु या पदार्थों से बनी मशीनों की औसत उम्र, आदमी की औसत उम्र से बहुत ही ज्यादा है। उनके अचानक, दुघर्टना, कैंसर या हार्टअटैक जैसी बीमारियों से खत्म हो जाने की आशंकाएं भी बहुत कम हैं। परिष्कृत मशीनों या रोबोट की मरम्मत आसान और टिकाऊ है, पर आदमी की? मशीनों से पटी दुनियां, प्राकृतिक जैविक दुनियां से अत्यधिक सुविधाजनक और दीर्घजीवी होगी, हो सकता है कि मशीनों पर आश्रित आदमी की उम्र भी बढ़ जाये... तो क्या? 

इस मामले में कुछ मोटी-मोटी बातें जो विचारणीय हैं ये हैं:
  1. रोबोट की मेमोरी में क्या डालना है या नहीं डालना है ये आदमी तय करेगा, यानि कौन सी सूचनाएं स्टोर करनी हैं या ‘‘नहीं करनी हैं’’ आदि।
  2. रोबोट के अपने निर्णय भी, इंसान द्वारा पूर्व नियोजित किये गये होंगे, यानि आदमी ही तय करेगा कि किसी रोबोट की किसी क्रिया के होने पर क्या प्रतिक्रया होगी।
  3. रोबोट में यांत्रिक गड़बड़ी होगी तो वह उसे कैसे अभिव्यक्त करेगा - रो के, गा के, या किस इंडीकेटर द्वारा.. ये भी आदमी तय करेगा, यानि रोबोट के सुख-दुख भी आदमी द्वारा तय होंगे।
  4. रोबोट में जो संवदेनशीलताएं डालनी हैं वो आदमी तय करेगा यानि रोबोट में कैसे सेंसर होंगे और किन सीमाओं पर वो क्या संकेत देगा, आदि।
निश्चित ही आदमी के हाथों में ही होगा कि उसके बनाये किसी रोबोट में क्या फीचर्स हों, आदमी ही तय करेगा कि उसका रोबोट कैसा हो। रोबोट में आदमी जैसी कमजोरियां ना हों, ये बात भी आदमी ही तय करेगा और उन्हें रोबोट में डालेगा ही नहीं, जैसे ;
  1. उसका रोबोट डरे।
  2. उसका रोबोट गुस्सा हो।
  3. उसका रोबोट गालियां बके।
  4. उसका रोबोट विश्वास या अविश्वास करे।
  5. उसका रोबोट शराब पिये और बेहोश हो जाये।
  6. उसका रोबोट दी गई स्टोर क्षमता से भी कहीं ज्यादा चीजें इकट्ठी करता जाये।
  7. उसका रोबोट वेद, कुरान, बाइबिल या किसी ग्रंथ या गुरू के अनुसार चले।
  8. उसका रोबोट अपना ही डुप्लीकेट बना ले और ऐसे दो-चार डुप्लीकेट मिलकर आपको (यानि किसी रोबोट के जनक को) ही धमकाने लगें। 
  9. उसका रोबोट किसी औरत की गंध पाकर उसके पास से हिले ही नहीं और सारे काम छोड़ दे।
ये तो बस कुछ प्राथमिक बातें थीं, ऐसी ही बहुत सी बातें आप अपनी दिमागी क्षमता से ढूंढ सकते हैं।

अब इस सारी कथा-कहानी का निचोड़ ये, कि इन्सान होते हुए भी -
  1. ऐसा क्यों होता है कि कुछ बहुत अच्छी बातें, जो आप जानते और चाहते हैं - आपमें नहीं होतीं... और 
  2. ऐसा क्यों होता है कि कुछ बहुत बुरी बातें, जो आप नहीं चाहते और चाहते हैं आपमें ना हों ... आप उन्हीं पर जिन्दगी भर अमल करते हैं।

शनिवार, 21 जनवरी 2012

Mera Bhopal ?

भोपाल की सुहानी शाम

भोपाल की झील में सेलिंग

भोपाल की झील का विंहगम दृश्य

भोपाल नगरनिगम कार्यालय


सोमवार, 2 जनवरी 2012

पिछली सदी में.. और इस पल


 सदी नहीं, बरस महत्वपूर्ण होता है
बरस नहीं,  महीना खास होता है
महीना नहीं, हफ्ता विशेष होता है
हफ्ता नहीं, कोई दिन होता है बहुत जरूरी
दिन नहीं, किसी पहर को महसूसना स्पेशल है
किसी पहर में भी..
कोई पल ही चरम होता है...
इसलिए मुझे अच्छी नहीं लगती
किसी बीते या आने वाले बरस की बात

तुम अतीत से संचालित हो
तुम मुझसे वैसा ही व्यवहार करोगे
जैसा तुमने मुझे
किसी बीते पल महसूसा।
अभी बीते पल जैसा या
सदियों पहले जैसा।

आता कल तुम देख नहीं सकते
और इस पल के हिसाब से व्यवहारना
सच,
सदियों में कोई 'एक' ही सीख पाता है।
सच,
'एक' होना बहुत मुश्किल है।