चित्रांकन : राजेशा
रूठ गये गर तुम ही मुझसे, कहो फिर मेरी ठौर कहां है
गले लगाया तुमने ही तो, मेरे जलन भरे सीने को
तेरे ही तो होंठ हैं प्यासे, मेरे सारे गम पीने को
दर्द भरी धड़कने मैं जी लूं, मुझमें इतना जोर कहां है।
रूठ गये गर तुम ही मुझसे, कहो फिर मेरी ठौर कहां है
इन रेशम केशों की छाया, जीवन की हर धूप भुलाती
इस चेहर की चंद्रप्रभा ही, दुनियां की हर रात सजाती
ये मुस्कान तेरी है सब कुछ, वर्ना कोई भोर कहां है
रूठ गये गर तुम ही मुझसे, कहो फिर मेरी ठौर कहां है
केवल एक तुम्हीं तो मेरे, जीवन का आधार प्रिये
केवल एक तुम्हीं तो मेरे, सपनों का संसार प्रिये
तुम ही मौन हुए तो मेरी, इन सांसों का शोर कहां है
रूठ गये गर तुम ही मुझसे, कहो फिर मेरी ठौर कहां है
12 टिप्पणियां:
दिल ही निकाल कर रख दिया आज तो....
बहुत खूब!
कुंवर जी,
सुन्दर...!!
सरस, सरल और रोचक भाषा में लिखा एक बहुत अच्छा गीत।
chitrankan ke liye rajesha ko thanx Aur shabdon me dil ki kasak pirone ke liye Priy tumko bhi....
इन रेशम केशों की छाया, जीवन की हर धूप भुलाती
इस चेहर की चंद्रप्रभा ही, दुनियां की हर रात सजाती
लाजवाब और फिर चित्रांकन के क्या कहने
bahut khub
sunder prastuti.
ज़ज्बातों का अच्छा खुलासा किया है ।
सुन्दर प्रस्तुति।
केवल एक तुम्हीं तो मेरे, जीवन का आधार प्रिये
केवल एक तुम्हीं तो मेरे, सपनों का संसार प्रिये
तुम ही मौन हुए तो मेरी, इन सांसों का शोर कहां है
waah
रचना और रेखांकन दोनो सुन्दर ।
कविता के साथ रेखांकित चित्र भी प्यारी लगी.
कलेजा चीर दिया ... बहुत ही लजवाब रचना ... दिल से निकला कलाम ...
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