शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

बात नहीं समझानी आयी



पढ़ते पढ़ते हम सोये तो, ख्वाब में वही कहानी आयी
इक पहचाना दिवाना दिखा और सूरत इक बेगानी आई

लाल उजाला, हरा अंधेरा और दूध सा सूरज भी था
जो भी देखा, तुझको पुकारा, हर इक तेरी निशानी आई

सच कहते हैं कब दिखता है, दिल में छुपा हुआ आंखों को
कभी कबीरा मुस्काया और, कभी-कभी मीरा दीवानी आई

कोरी किताब तरसती रह गई, पढ़े जमाना काली चीजें
नींद रही नैनों की चौखट, होश से नहीं निभानी आई

नाम ले तेरा लब मेरे सूखे, हलक में सूखी प्यास रही
मैं गूंगा और सब बहरे थे, बात नहीं समझानी आयी

3 टिप्‍पणियां:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

पढ़ते पढ़ते हम सोये तो, ख्वाब में वही कहानी आयी
इक पहचाना दिवाना दिखा और सूरत इक बेगानी आई
Bahut sundar !

अजय कुमार ने कहा…

अच्छी रचना , बधाई

kshama ने कहा…

नाम ले तेरा लब मेरे सूखे, हलक में सूखी प्यास रही
मैं गूंगा और सब बहरे थे, बात नहीं समझानी आयी..
Bahut khoob!
Gantantr diwas kee anek shubhkamnayen!

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