जीना मुश्किल, और चुप्पा दिल
वक्त का वार है, कैसे सहें?
रोते गीत हैं, जहरीले मीत हैं
छंदों में इन्हें, कैसे कहें?
जिन्दा तो लानत, मरे तो अमानत
इस प्रेम के नद में कैसे बहें?
दोपहर चढ़ी और रात भी बढ़ी
चिन्ताओं के पर्वत कैसे ढहें?
नैनों के काम, रहे सदा बदनाम
फिर तेरे इशारे, कैसे गहें?
वक्त का वार है, कैसे सहें?
रोते गीत हैं, जहरीले मीत हैं
छंदों में इन्हें, कैसे कहें?
जिन्दा तो लानत, मरे तो अमानत
इस प्रेम के नद में कैसे बहें?
दोपहर चढ़ी और रात भी बढ़ी
चिन्ताओं के पर्वत कैसे ढहें?
नैनों के काम, रहे सदा बदनाम
फिर तेरे इशारे, कैसे गहें?
9 टिप्पणियां:
sundar rachna.
itni khubsurat kavita, nihshabd hun... kaise kahun?
ek achchhi rachna
बहुत उम्दा!!
अच्छी रचना।
नैनों के काम, रहे सदा बदनाम
फिर तेरे इशारे, कैसे गहें?
Iske aage kya kah sakte hain?
जीना मुश्किल, और चुप्पा दिल
वक्त का वार है, कैसे सहें?
रोते गीत हैं, जहरीले मीत हैं
छंदों में इन्हें, कैसे कहें?
waah kya baat kahi hai.
बहुत सही कहा आपने. अच्छा लगा .
sunder atisunder.............
http://rajdarbaar.blogspot.com/
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