बुधवार, 13 जनवरी 2010

अपना ईमान बचाकर रखिये




चाहे खूब छिपाकर रखिये
दिल में आग जलाकर रखिये

खुद से दुश्मनी मंहगी पड़ेगी
खुद को दोस्त बनाकर रखिये

इच्छाओं का जोर बहुत है
अपनी जान बचाकर रखिये

उससे सहमत होना मुश्किल
अपना ईमान बचाकर रखिये

रोना धोना बहुत है जग में
मन मुस्कान सजाकर रखिये

झूठ के बाजारों में ना खोना
सच से सदा निभाकर रखिये

9 टिप्‍पणियां:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बेहतरीन !

निर्मला कपिला ने कहा…

रोना धोना बहुत है जग में
मन मुस्कान सजाकर रखिये

झूठ के बाजारों में ना खोना
सच से सदा निभाकर रखिये
अब कहना क्या रह गया है लाजवाब गज़ल है । बहुत बहुत बधाई शुभकामनायें

खुला सांड !! ने कहा…

atirkt sundar!!!

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

चाहे खूब छिपाकर रखिये....
खुद से दुश्मनी.......
इच्छाओं का जोर बहुत है....
उससे सहमत होना मुश्किल....
रोना धोना बहुत है जग में....
झूठ के बाजारों में ना खोना
सच से सदा निभाकर रखिये.....

आपके कलाम में एक खास बात ये लगी
कि सभी शेर एक दूसरे के पूरक बने हुए हैं
बधाई स्वीकार करें

शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी रचना।

हास्यफुहार ने कहा…

बहुत अच्छी ग़ज़ल।

vandana gupta ने कहा…

bahut sundar .

दिगम्बर नासवा ने कहा…

रोना धोना बहुत है जग में
मन मुस्कान सजाकर रखिये

झूठ के बाजारों में ना खोना
सच से सदा निभाकर रखिये ....

बहुत अच्छे शेर हैं सब के सब .......... लाजवाब .......

Alpana Verma ने कहा…

रोना धोना बहुत है जग में
मन मुस्कान सजाकर रखिये
yah baat har koi samjh le to baat hi kya hai!

bahut khoob gazal kahi hai.abhaar

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