शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

तुम ही हमारे सनम ना हुए



तुझको भूल गये हैं लेकिन, जिन्दगी के गम कुछ कम ना हुए
दुनियाँ बड़ी, खो गये तुम कहीं, तुमसे जुदा क्यों हम ना हुए

आंखों में तेरा चेहरा रहा, और रूह में तेरी तमन्ना रही
हम ही शमां, हम ही परवाने, तुम ही हमारे सनम ना हुए

शीशे-मिट्टी से टूटते रहना, छलकना जाम से सीख लिया
रोज ही ली, और रोज ही तोड़ी, कोई पुख्ता कसम ना हुए

मयखाने के दरवाजे, तंग गलियां और गलत घर जान गये
तुम ही बस अनजान रहे कि, कम मेरे रंज ओ अलम न हुए

दुनियां भी संग रोई, रोया जब मेरा दिल कर याद तुझे
तेरी बेरूखी बदलियां उड़ गई, दो फाहे भी नम न हुए

4 टिप्‍पणियां:

हास्यफुहार ने कहा…

अच्छी रचना।

Mohinder56 ने कहा…

सुन्दर गजल के लिये बधाई.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आंखों में तेरा चेहरा रहा, और रूह में तेरी तमन्ना रही
हम ही शमां, हम ही परवाने, तुम ही हमारे सनम ना हुए

खूबसूरत लिखा है ......... अच्छे शेर बन पड़े हैं ..........

शबनम खान ने कहा…

हर एक लफ्ज़ कुछ कह रहा है...।
बहुत अच्छा...

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