Wednesday 12 August 2009

वैज्ञानिक अंधविश्वासों की उम्र

विज्ञान एक विचार नहीं, दृष्टि है। अंधविश्वास कला ही नहीं, विज्ञान का विषय भी है। वैज्ञानिक अंधविश्वास भी होते हैं। वैज्ञानिक अंधविश्वासों की उम्र, नई खोजों के स्पष्ट होने तक होती है। परन्तु संदेह, पुराने वैज्ञानिक विश्वासों को जिन्दा रखता है। स्वस्थ संदेह विज्ञान का आधार है। मानव शरीर के वैज्ञानिक अध्ययन में भी वैज्ञानिक अंधविश्वासों से उबरने की जरूरत है।
कई दवाईयाँ की खोज जिन बीमारियों को ठीक करने के लिए की गईं, उससे ज्यादा अन्य बीमारियों से निपटने के लिए प्रयोग की जाती हैं। वियाग्रा के साथ यह तथ्य और पुष्ट हुआ है। पर ऐसा नहीं कि साईड इफेक्ट अच्छे ही रहें, बुरे साइड इफेक्ट ज्यादा होते हैं। चूंकि ऐलौपेथी में समग्र शरीर और दिमाग को देखते हुए नहीं अंग विशेष को आधार बनाकर चिकित्सा की जाती है अतः यह एक ज्यादा अधूरी चिकित्सा पद्यति दिखती है। तो मानव शरीर को एक समग्र इकाई के रूप में देखना मानव शरीर की चिकित्सा के संबंध में प्रस्तुत किसी भी चिकित्सा पद्यति की पहली दृष्टि होनी चाहिए।
इसके बाद इंसान का शरीर बस शरीर ही नहीं वो ऐसी चीजों का आधार और घर भी है जो बिना भौतिक शरीर के काम करती हैं। इसलिए किसी भी मानवीय चिकित्सा पद्यति को मनुष्य शरीर से आगे मनुष्य के दिमाग और अन्य अपरिभाषित मनोवैज्ञानिक तथ्यों को भी अध्ययन का क्षेत्र बनाना चाहिए। भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा में इस बात का ध्यान बखूबी रखा गया है।
सीमित दृष्टिक्षेत्र होने के कारण मनुष्य की उत्कृष्ट वैज्ञानिक खोजें भी 100-200 सालों में समझ में आती हैं कि कितनी एकांगी और अधूरी थीं।
मनुष्य के अंधविश्वासों में एक है जादू टोना। कि किसी का बाल ले लिया और उस पर तंत्र मंत्र के प्रभाव से जिस व्यक्ति का वह बाल है उसे प्रभावित किया जाना। वैज्ञानिक अब किसी व्यक्ति के एक बाल से उसकी डी एन ए/ जीन्स संरचना को समझने में सक्षम हैं। कल को प्रभावित होने/करने वाली बात के संबंध में भी संभावना जताई जा सकती है। प्राचीन अंधविश्वास थोड़ा थोड़ा साफ हुआ है। प्राचीन मान्यता थी कि कोई भी बीमारी संक्रमित हो सकती है सभी बीमारियां छुआछूत से फैलती हैं यह बात गलत है, पर अब वैज्ञानिक रूप से भी कई बीमारियाँ छूने, रोगग्रसित व्यक्ति के संपर्क में आने, लार रक्त संबंध बनने से फैलती हैं यह एक तथ्य है। स्वाइन फ्लू तात्कालिक उदाहरण है।
वैज्ञानिक आविष्कारों में हवाई जहाज पक्षियों के व्यवहार की नकल से बना। आज कई वैज्ञानिक अनुसंधान मनुष्य की इसी नकल की प्रवृत्ति का अनुगमन कर रहे हैं। वैज्ञानिक चींटियों, मधुमक्खियों और अन्य धरतीवासी जीवों का अध्ययन कर रहे हैं जिनसे पता चले कि किस प्रकार मनुष्य जाति भी अधिक संयोजन और सामंजस्यपूर्ण तरीके से रहती हुई विकास कर सके। विमानों को बनाने के लिए उड़ने वाले कीटों और पक्षियों की भौतिक रासायनिक और अन्य वैज्ञानिक संरचनाओं का अध्ययन किया जा रहा है। धरती के एक बड़े हिस्से पर जल ही जल है। जल में रहने वाले जीवों और वनस्पतियों के अध्ययन से भी मानव जीवन के जल के भीतर रहने की संभावनाओं पर भी वैज्ञानिक शोध जारी हैं।
विज्ञान को धारणाओं, सिद्धांतों, निष्कर्षों में बांधने की बजाय संदेह के साथ, मुक्त रहने दिया जाय। क्योंकि यदि ऐसा नहीं किया गया तो वह भी पोंगापंथी-धर्म, विचारधाराओं, इतिहास और संस्कृति की तरह मुर्दा और थोथा हो जाएगा। विज्ञान मानव मेधा की सक्रियता है जिसे घिसे पिटे ढर्रों पर चलाने की बजाय खुला रहना चाहिए अज्ञात दशाओं और दिशाओं के लिए। नई खोजों के समय अतीत के वैज्ञानिक निष्कर्षों को अंधविश्वासों की तरह छोड़ने की जरूरत है। कला में क्या हम यही नहीं करते। नये प्रयोग, नये आदमी के जन्म की जरूरत हैं।

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

अंधविश्वास का विज्ञान में कोई स्थान नहीं। गलत सिद्ध होते ही धारणा को छोड़ना पड़ता है।

Anonymous said...

excellent topic ....... hope u discuss it more after incoporating dwivediji positive comments........

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